उत्तर प्रदेश के संभल जिले में रविवार (24 नवंबर 2024) को मुस्लिम भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया था। यह हमला उस समय किया गया था जब कोर्ट के आदेश पर एक टीम जामा मस्जिद का सर्वे करने गई थी। हमले में 2 दर्जन से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए थे और भीड़ में शामिल 5 लोगों की संदिग्ध हालातों में मौत भी हुई थी।
पुलिस घटना के बाद से आरोपितों का पता लगाने में जुटी थी। अब इसी जाँच के क्रम में सामने आया है कि घटना वाले दिन हिंसक भीड़ अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाते हुए आगे बढ़ी थी और आरोपितों के पास तमंचे और कारतूस भी थे। पुलिस ने आरोपितों की गिरफ्तारी के साथ इन हथियारों को बरामद कर लिया है। आरोपितों की उम्र 14 से 72 वर्ष के बीच है।
इस हिंसा की विस्तृत FIR SHO संभल कोतवाली इंस्पेक्टर अनुज कुमार तोमर ने दर्ज करवाई है। रविवार को दी गई अपनी तहरीर में SHO ने बताया कि 24 नवंबर को वो अपने हमराह पुलिसकर्मियों के साथ संभल की जामा मस्जिद पर ड्यूटी दे रहे थे। सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर एहतियातन पुलिसकर्मी कारतूस, टीयर गैस सेल और अन्य दंगा निरोधक उपकरणों से लैस थे। तभी अचानक ही मस्जिद की तरफ 800 से 900 लोगों की भीड़ तेजी से बढ़ने लगी।
अल्लाह-हू-अकबर चिल्ला रही थी भीड़
इंस्पेक्टर संभल कोतवाली का दावा है कि भीड़ ‘अल्लाह-हू-अकबर’ का नारा लगा रही थी। इस भीड़ को आगे बढ़ कर कुछ पुलिसकर्मियों ने रोकना चाहा। इन्हें समझाने की बहुत कोशिश की गई। पुलिस ने बताया कि मस्जिद को किसी भी तरह का नुकसान नहीं किया जा रहा। हालाँकि भीड़ में से कोई बी यह दलील सुनने को तैयार नहीं था। सुबह 8:45 पर भीड़ ने पुलिस पर पत्थरबाजी शुरू कर दी और मस्जिद से महज 100 मीटर की दूरी तक पहुँच गई।
भीड़ ने सुरक्षा पंक्ति बनाकर खड़े पुलिसकर्मियों को पीटना शुरू कर दिया। उनमें से कई के हथियारों को लूट लिया गया। हमले में कई पुलिसकर्मियों को गंभीर चोटें आईं। हालात गंभीर होता देखकर अतिरिक्त फ़ोर्स की माँग की गई। कुछ पुलिस वालों को अपने घायल सिपाहियों के इलाज की जिम्मेदारी पर लगा दिया गया। खुद SHO ने भीड़ से लूटे गए हथियारों को वापस करने की अपील की। हालाँकि बदले में उन पर भी पत्थरबाजी शुरू कर दी गई।
संभल जिले में हुई हिंसा की यह घटना अत्यंत चिंताजनक है, जहां पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को भीड़ के हमले का सामना करना पड़ा। इस घटना ने सार्वजनिक व्यवस्था को पूरी तरह से प्रभावित किया और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अधिकारियों को कठोर कदम उठाने पड़े।
मुख्य घटनाएँ:
- पुलिस अधिकारियों और कर्मियों पर हमले:
- पत्थरबाजी के दौरान कोतवाली संभल के अलावा कैलादेवी, रजपुरा और कुढ़फतेहगढ़ के SHO भी घायल हो गए।
- हिंसक भीड़ ने SDM रमेश बाबू, DSP अनुज चौधरी और SP संभल के PRO पर भी हमला किया और उन्हें घायल कर दिया।
- रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) के कांस्टेबल सोनू और अन्य पुलिसकर्मियों को भी चोटें आईं।
- भीड़ का उग्र व्यवहार:
- पुलिस ने भीड़ को निषेधाज्ञा लागू करने और बल प्रयोग की चेतावनी दी, लेकिन इसके बावजूद हिंसा बढ़ी।
- पुलिस पर पत्थरों के साथ गोलियां चलाई गईं, और सार्वजनिक संपत्तियों में तोड़फोड़ की गई। एक संरक्षित दीवार को भी तोड़ा गया और टायरों को जलाकर आगजनी की गई।
- शांति व्यवस्था में विघ्न:
- उपद्रवियों की हिंसक गतिविधियों से शांति व्यवस्था भंग हो गई, जिसके कारण स्थानीय दुकानदारों ने अपने शटर गिरा दिए और लोग अपने घरों की खिड़कियाँ बंद करने लगे।
- पुलिस ने शांति बहाल करने के लिए वाटर कैनन का प्रयोग किया, लेकिन भीड़ ने इसका कोई असर नहीं दिखाया और पथराव जारी रखा।
- पुलिस की कार्रवाई:
- पुलिस ने हालात को नियंत्रण में लाने के लिए हल्का बल प्रयोग किया और जिले के DM ने भीड़ को काबू करने के लिए अतिरिक्त उपायों की मंजूरी दी।
सुरक्षा और प्रशासनिक प्रतिक्रियाएँ:
- इस घटना में स्पष्ट रूप से पुलिस और प्रशासन की ओर से त्वरित और सख्त कार्रवाई की आवश्यकता थी, जो बाद में हुई भी। स्थिति को शांत करने के लिए प्रशासन ने बल प्रयोग और वाटर कैनन के अलावा प्रशासनिक आदेश भी जारी किए।
- यह घटना दिखाती है कि हिंसक भीड़ नियंत्रण के लिए संवेदनशील उपायों और सामंजस्यपूर्ण कार्रवाई की जरूरत होती है। शांति बनाए रखने के लिए पुलिस को मजबूती से स्थिति को काबू करने का प्रयास करना पड़ा।
समाज पर प्रभाव:
- ऐसी घटनाएं समाज में भय और असुरक्षा का माहौल बना देती हैं, जिससे आम नागरिकों को भी नुकसान हो सकता है। उपद्रवियों द्वारा की गई हिंसा ने केवल पुलिसकर्मियों को ही नहीं, बल्कि आम जनता को भी प्रभावित किया।
- इसके अलावा, सार्वजनिक संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाने से आर्थिक और सामाजिक हानि हुई।
इस घटना ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सख्त कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, और प्रशासन को हिंसक भीड़ की स्थिति में उचित बल प्रयोग और संयम दिखाते हुए शांति स्थापित करने के प्रयासों को त्वरित और प्रभावी बनाना चाहिए।
संभल हिंसा की इस घटना ने पुलिस और प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती पेश की, जहां न केवल बड़े लोग, बल्कि नाबालिगों और बुजुर्गों का भी हिंसक भीड़ में शामिल होना चिन्ता का कारण बना। इस दौरान पुलिस ने दंगाइयों पर काबू पाने के लिए कड़ी कार्रवाई की और कई आरोपितों को गिरफ्तार किया।
मुख्य बिंदु:
- भीड़ में शामिल लोग:
- हिंसक भीड़ में 14 साल से लेकर 72 साल तक के लोग शामिल थे, जिनमें नाबालिग और बुजुर्ग भी थे।
- गिरफ्तारी के दौरान 19 लोगों को पकड़ा गया, जिनमें से दो नाबालिग (14 और 16 साल के) भी थे।
- अन्य आरोपितों में 19 से लेकर 58 साल तक के विभिन्न उम्र के लोग थे, जिनमें युवा और बुजुर्ग दोनों शामिल थे।
- गिरफ्तार आरोपितों से बरामद सामग्री:
- पुलिस ने हमलावरों के पास से विभिन्न हथियार और लूटी गई पुलिस सामग्री बरामद की।
- हथियारों में 12 बोर के तमंचे, रबर बुलेट, .315 बोर के कारतूस और अन्य गोलियाँ शामिल थीं।
- यह भी सामने आया कि हमलावरों ने पुलिस से रबर बुलेट और गोलियाँ लूट ली थीं, जो उनकी हिंसक गतिविधियों का हिस्सा थीं।
- पुलिस की कार्रवाई:
- पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए रबर बुलेट और आंसू गैस के गोले छोड़े, लेकिन हमलावरों ने गोलियों और पत्थरों से जवाब दिया।
- 21 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया गया और उनकी तलाशी में विभिन्न हथियार और लूटी गई सामग्री बरामद हुई।
- गिरफ्तार आरोपितों में से कई के पास से लूटी गई पुलिस सामग्री और गोलियाँ मिलीं, जो पुलिस की कार्रवाई से जुड़ी थीं।
- हत्या के मामले:
- हिंसा में मारे गए लोगों के पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यह सामने आया कि अधिकांश लोगों को .315 बोर की गोलियाँ लगी थीं, जो पुलिस या सुरक्षाबलों से लूटी गई गोलियाँ हो सकती हैं।
- यह जानकारी हिंसा की गंभीरता को दर्शाती है, कि किस प्रकार घातक हथियारों का इस्तेमाल किया गया और पुलिस के उपकरणों का भी लूट लिया गया।
सामाजिक और कानूनी प्रभाव:
- इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हिंसा में शामिल होने वालों में विभिन्न आयु वर्ग के लोग शामिल थे, जो समाज के विभिन्न हिस्सों से आते हैं। इसमें नाबालिगों का भी शामिल होना यह दिखाता है कि युवाओं को भी उकसाया जा सकता है, जो कानून और समाज के लिए चिंता का विषय है।
- पुलिस की कार्रवाई और गिरफ्तारियों के बावजूद, यह घटना इस बात को उजागर करती है कि पुलिस को हिंसक भीड़ को नियंत्रित करने के लिए और अधिक प्रभावी रणनीतियाँ अपनानी होंगी।
- इस प्रकार की घटनाएं समाज में भय और असुरक्षा का माहौल पैदा करती हैं, जिससे शांति और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल उठते हैं।
यह घटना उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की चुनौती को और बढ़ाती है और राज्य प्रशासन के लिए यह एक महत्वपूर्ण संकेत है कि हिंसा को रोकने और शांति बनाए रखने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं।
पुलिसकर्मी ही नहीं उनके वाहन भी टारगेट पर
गौरतलब है कि हिंसा के दौरान उपद्रवियों ने पुलिस वालों की 3 प्राइवेट कारों को भी जलाकर निशाना बनाया। इसके साथ सुरक्षा बलों की 4 निजी बाईकों को भी आग के हवाले कर दिया गया। ये सभी पुलिसकर्मी अलग-अलग थानाक्षेत्रों से इमरजेंसी ड्यूटी पर जामा मस्जिद क्षेत्र में भेजे गए थे। सरकारी गाड़ियों में भी आगजनी का प्रयास किया गया। पत्थरबाजी करके DSP की गाड़ी का शीशा तोड़ डाला गया। उपद्रवियों का इतना खौफ था कि उनके खिलाफ डर से कोई स्थानीय व्यक्ति गवाही देने के लिए तैयार नहीं हुआ।
पुलिस ने 24 नवंबर को ही इन सभी 21 आरोपितों को शाम 5:10 पर आधिकारिक तौर पर गिरफ्तार कर लिया। इनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 191 (2), 191 (3), 190, 109 (1), 125 (a), 125 (b), 221, 132, 121 (1), 121 (2), 324 (4), 223 (b), 326 (f) और 317 (3) के साथ आपराधिक कानून संसोधन 1932 की धारा 7 व सार्वजानिक सम्पत्ति नुकसान निवारण अधिनियम 1984 के सेक्शन 3/4 के तहत कार्रवाई की गई है। इन सभी पर आर्म्स एक्ट की धारा 7/3/4 भी लगाई गई है।
पुलिस मामले की जाँच व अन्य जरूरी कानूनी कार्रवाई में जुटी हुई है। CCTV फुटेज व अन्य माध्यमों से अन्य हमलावरों की तलाश की जा रही है। भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच बीते शुक्रवार (29 नवंबर) की जुमे की नमाज़ अदा की गई है। घायल पुलिसकर्मियों का इलाज चल रहा है।