बांग्लादेश में शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के बाद सत्ता में आई मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने राष्ट्रपिता मुजीबुर रहमान की स्मृतियों को मिटाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। यह सरकार, जो इस्लामी कट्टरपंथ और पाकिस्तान की विचारधारा के करीब मानी जाती है, ने अब बांग्लादेशी करेंसी पर से मुजीबुर रहमान की तस्वीर को हटाने का निर्णय लिया है। इसके बजाय, जुलाई-अगस्त 2024 में हुए इस्लामी कट्टरपंथियों के प्रदर्शन की तस्वीरों और बांग्लादेश की मस्जिदों और धार्मिक स्थलों की छवियों को नोटों पर लगाने की योजना है।
प्रमुख घटनाएँ:
- नोटों पर बदलाव:
- बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक ने 100, 200, 500, और 1000 टका के नए नोटों की छपाई शुरू की है।
- इन नोटों पर मुजीबुर रहमान की तस्वीर को हटा दिया गया है, और इसकी जगह इस्लामी कट्टरपंथी प्रदर्शनों और धार्मिक स्थलों की तस्वीरें लगाई जाएंगी।
- यह नोट अगले 6 महीनों में बाजार में आ सकते हैं, और धीरे-धीरे सभी करेंसी नोटों पर यही नीति लागू होगी।
- मुजीबुर रहमान की स्मृतियों को मिटाना:
- पहले, सरकार ने बांग्ला भवन से मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटा दी थी।
- इसके अलावा, बांग्लादेश मुक्ति युद्ध से जुड़ी तस्वीरें भी हटा दी गईं, और बंगबंधु की हत्या की तारीख सहित अन्य महत्वपूर्ण छुट्टियाँ भी रद्द कर दी गईं।
- सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव:
- बांग्लादेश में मुजीबुर रहमान को एक राष्ट्रीय नायक और मुक्ति संग्राम के प्रेरक के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनके योगदान को मिटाने का प्रयास कई बंगाली नागरिकों के लिए एक बड़े आघात के रूप में देखा जा रहा है।
- इस कदम को पाकिस्तान के दृष्टिकोण से भी जोड़कर देखा जा सकता है, क्योंकि पाकिस्तान मुजीबुर रहमान को पाकिस्तान तोड़ने का दोषी मानता है। इस प्रकार, बांग्लादेश में उनके प्रति घृणा और उनकी विरासत को नकारने का प्रयास पाकिस्तान की विचारधारा के अनुरूप प्रतीत होता है।
- यूनुस सरकार का एजेंडा:
- यूनुस सरकार ने सत्ता में आते ही कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रतीकों को बदलने का प्रयास किया है, जिससे उसकी विचारधारा और राजनीतिक दिशा स्पष्ट होती है। इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों के साथ मिलकर उसने बांग्लादेश के इतिहास और संस्कृति को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की है।
यह घटनाक्रम बांग्लादेश की राजनीति में गहरी असहमति और विवादों का कारण बन रहा है, क्योंकि मुजीबुर रहमान की यादें और उनके द्वारा दिए गए योगदान को नकारने का यह कदम समाज में विभाजन उत्पन्न कर सकता है।