यह घटना समाज में मौजूद अंधविश्वास और असंवेदनशीलता का गंभीर उदाहरण है, जो न केवल जानलेवा साबित हो सकता है, बल्कि चिकित्सा विज्ञान की उपेक्षा का परिणाम भी दिखाता है। आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में दलित बच्ची भव्यश्री की दुखद मृत्यु ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि धार्मिक अंधविश्वास और झाड़-फूँक जैसी प्रथाओं के खिलाफ जागरूकता और कड़े कदम उठाने की कितनी जरूरत है।
भव्यश्री के माता-पिता का अपनी बेटी को बचाने की कोशिश में चर्च के झाँसे में आना, उनकी गरीबी और असहायता को दर्शाता है। यह स्थिति उन समाजिक और आर्थिक समस्याओं को भी उजागर करती है, जिनकी वजह से गरीब परिवार अक्सर महंगे इलाज के बजाय झाड़-फूँक जैसी पद्धतियों का सहारा लेते हैं।
आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में अंधविश्वास के चक्कर में 8 साल की एक दलित बच्ची की जान चली गई। पीड़िता का नाम भव्यश्री है, जिसे ब्रेन ट्यूमर था। उसके ब्रेन ट्यूमर का इलाज करने का दावा कर उसे 40 दिनों तक चर्च में रखा गया था। इस दौरान इलाज के बजाय पीड़िता से मज़हबी क्रिया-कलाप करवाए गए। पादरी ने पीड़ित परिवार को ‘सब सही हो जाएगा’ जैसे झाँसे दिए। आखिरकार भव्यश्री ने सोमवार (9 दिसंबर 2024) को दम तोड़ दिया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, घटना नेल्लोर के कालुवई की है। यहाँ की दलित बस्ती के एक गरीब परिवार में 8 वर्षीया भव्यश्री एक बहन और एक भाई के साथ रहती थी। पिछले कुछ दिनों से भव्यश्री की तबीयत खराब चल रही थी। भव्यश्री को अक्सर उल्टियाँ होती थीं और सिर में दर्द रहता था। परिजनों ने जाँच करवाई तो बच्ची को ब्रेन ट्यूमर निकला। डॉक्टरों ने सर्जरी कराने के लिए कहा, जिसका इलाज काफी ज्यादा था।
Who killed this minor girl?
Bhavyashree (8) had been dealing with headaches and vomiting for some time, which turned out to be symptoms of a tumor that required surgery. Due to a financial crisis, her family chose faith healing over medical treatment and took her to a church… pic.twitter.com/NZ0gnLlCKK
— Subhi Vishwakarma (@subhi_karma) December 11, 2024
इस घटना से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलू:
- अंधविश्वास का प्रभाव: भव्यश्री के माता-पिता ने चर्च में झाड़-फूँक पर भरोसा करके अपनी बेटी का इलाज कराने में देरी की, जिससे स्थिति और खराब हो गई। यह दर्शाता है कि अंधविश्वास, खासकर ग्रामीण और गरीब समुदायों में, अभी भी गहरी जड़ें जमाए हुए है।
- स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी: अगर शुरुआती चरण में भव्यश्री को उचित मेडिकल सुविधा मिलती, तो शायद उसकी जान बचाई जा सकती थी। यह घटना ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा सेवाओं की पहुँच और सर्जरी के उच्च खर्च पर भी सवाल खड़ा करती है।
- धार्मिक संस्थानों की भूमिका: यह घटना धार्मिक संस्थानों द्वारा चिकित्सा उपचार के दावे और झूठे आश्वासनों की ओर भी ध्यान खींचती है। चर्च के पादरी द्वारा भव्यश्री के इलाज के नाम पर जो किया गया, वह न केवल अनैतिक है, बल्कि गैर-कानूनी भी होना चाहिए।
- कानूनी और सामाजिक कदम: इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार और प्रशासन को ठोस कदम उठाने की जरूरत है। झाड़-फूँक और अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले संस्थानों और व्यक्तियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही, लोगों में जागरूकता फैलाने और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
भव्यश्री की मृत्यु न केवल उसके परिवार, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि किस प्रकार अंधविश्वास और चिकित्सा सेवाओं की कमी गरीब और असहाय लोगों की जान ले रही है। इस दुखद घटना से सबक लेते हुए, समाज और सरकार को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी बच्चा या व्यक्ति अंधविश्वास का शिकार न हो और हर किसी को समय पर सही चिकित्सा सेवाएँ मिलें।