‘एक देश एक चुनाव’ प्रस्ताव को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। सूत्रों के मुताबिक इस बिल को मौजूदा शीतकालीन सत्र के दौरान ही संसद में पेश किया जा सकता है। इस बिल को लेकर सभी राजनीतिक दलों के सुझाव लिए जाएंगे। बाद में इसे संसद से पास कराया जाएगा। इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमिटी ने एक देश एक चुनाव से जुड़ी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। सूत्रों के मुताबिक कैबिनेट में कानून मंत्री ने एक देश एक चुनाव का प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव के बारे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विस्तार से जानकारी दी थी।
लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होंगे
‘एक देश, एक चुनाव’ के तहत लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमिटी की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि पहले कदम में लोकसभा और राज्यसभा चुनाव को एक साथ कराना चाहिए। कमेटी ने सिफारिश की है कि लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव एक साथ संपन्न होने के 100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव हो जाने चाहिए।
‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) का कॉन्सेप्ट भारत में सभी राज्यों की विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने का सुझाव है। इसका उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाना, संसाधनों की बचत करना, और सरकारों को स्थिरता प्रदान करना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार लंबे समय से इस विचार की वकालत कर रही हैं।
Union Cabinet has approved 'One Nation One Election' Bill: Sources pic.twitter.com/uAsIyjNcCv
— ANI (@ANI) December 12, 2024
‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रमुख पहलू
- सामान्य अवधारणा:
- लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं।
- इससे बार-बार चुनाव होने की जरूरत नहीं होगी और पूरे देश में चुनावी प्रक्रिया एक साथ संपन्न हो जाएगी।
- लाभ:
- खर्च में कमी:
चुनावों पर होने वाले भारी खर्च को नियंत्रित किया जा सकता है। - प्रशासनिक मशीनरी पर बोझ कम:
बार-बार चुनाव कराने से पुलिस, सुरक्षाबलों और अन्य संसाधनों पर दबाव होता है। - स्थिरता:
एक साथ चुनाव होने से सरकारें पूरे कार्यकाल के लिए स्थिर रह सकती हैं और बार-बार चुनावी राजनीति का सामना नहीं करना पड़ेगा। - विकास पर ध्यान:
लगातार चुनाव होने से विकास कार्य प्रभावित होते हैं। एक साथ चुनाव होने पर सरकारें अपने कार्यकाल के दौरान नीतियों के क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
- खर्च में कमी:
- चुनावी प्रक्रिया का सरलीकरण:
- एक ही समय पर वोटिंग और मतगणना से चुनावी प्रक्रिया तेज और कुशल हो जाएगी।
इतिहास में ‘एक देश, एक चुनाव’
- 1952, 1957, 1962, और 1967 में:
भारत में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे। - 1967 के बाद:
- राज्यों में अस्थिर सरकारों और विधानसभा भंग होने की घटनाओं के कारण चुनाव चक्र टूट गया।
- 1970 में लोकसभा भंग होने के कारण यह व्यवस्था पूरी तरह समाप्त हो गई।
वर्तमान में चुनौतियां
- संसद और विधानसभाओं का अलग कार्यकाल:
- राज्यों और केंद्र के चुनावी चक्र अलग-अलग समय पर चलते हैं।
- किसी राज्य में विधानसभा भंग होने या केंद्र सरकार गिरने की स्थिति में एक साथ चुनाव कराना मुश्किल हो सकता है।
- संवैधानिक बाधाएं:
- इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी।
- अनुच्छेद 83 (लोकसभा का कार्यकाल) और अनुच्छेद 172 (विधानसभा का कार्यकाल) में संशोधन करना होगा।
- राजनीतिक सहमति:
- सभी राज्यों और राजनीतिक दलों के बीच इस पर सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण है।
- लॉजिस्टिक चुनौतियां:
- इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराने के लिए बड़ी संख्या में ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की आवश्यकता होगी।
- सुरक्षाबलों और चुनावी अधिकारियों की तैनाती एक साथ करनी होगी।
वर्तमान स्थिति और आगे का रास्ता
- संसदीय समिति का गठन:
- 2024 में केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर विचार के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।
- पायलट प्रोजेक्ट का सुझाव:
- कुछ राज्यों में एक साथ चुनाव कराकर इसके प्रभाव का आकलन किया जा सकता है।
- संवैधानिक और राजनीतिक चर्चा:
- इस विचार को लागू करने के लिए व्यापक राजनीतिक और सामाजिक सहमति आवश्यक है।
मोदी सरकार एक देश एक चुनाव क्यों जरूरी मानती है
- एक देश एक चुनाव से जनता को बार-बार के चुनाव से मुक्ति मिलेगी।
- हर बार चुनाव कराने पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, जो कि कम हो सकते हैं।
- यह कॉन्सेप्ट देश में राजनीतिक स्थिरता लाने में अहम रोल निभा सकता है।
- इलेक्शन की वजह से बार बार नीतियों में बदलाव की चुनौती कम होगी।
- सरकारें बार-बार चुनावी मोड में जाने की बजाय विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
- प्रशासन को भी इसका फायदा मिलेगा, गवर्नेंस पर जोर बढ़ेगा।
- पॉलिसी पैरालिसिस जैसी स्थिति से छुटकारा मिलेगा। अधिकारियों का समय और एनर्जी बचेगी।
- सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और आर्थिक विकास में तेजी आएगी।