दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार (13 दिसंबर 2024) को मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर-II की वंशज सुल्ताना बेगम द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी। सुल्ताना बेगम ने लाल किले पर मालिकाना हक और 1857 से अब तक मुआवजे की माँग की थी। वह बहादुर शाह जफर-II के परपोते की विधवा हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुल्ताना बेगम ने 2021 के हाईकोर्ट के एकल बेंच के फैसले के खिलाफ यह याचिका दायर की थी, जिसमें उनकी याचिका देरी के आधार पर खारिज कर दी गई थी। अब कार्यवाहक चीफ जस्टिस विभू बखरू और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने भी इसे खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि 2021 के फैसले के खिलाफ अपील में ढाई साल की देरी हुई है।
सुल्ताना बेगम ने दावा किया था कि 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने जबरन लाल किले का कब्जा छीन लिया था। उनका कहना था कि यह किला उनके पूर्वज बहादुर शाह जफर-II से उन्हें विरासत में मिला है। बेगम ने वकील विवेक मोरे के माध्यम से दायर याचिका में यह भी तर्क दिया कि भारत सरकार लाल किले पर अवैध कब्जा किए हुए है। उन्होंने केंद्र सरकार से माँग की थी कि या तो लाल किला उन्हें लौटाया जाए या 1857 से अब तक का मुआवजा दिया जाए।
बता दें कि लाल कोट यानी लाल किला का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ ने किया था। शाहजहाँ ने आगरा से दिल्ली राजधानी स्थानांतरित करने के बाद इसे बनवाया। पहले यह लाल और सफेद संगमरमर का भव्य महल था। 1747 में नादिर शाह के आक्रमण के दौरान लाल किले की कला और बहुमूल्य गहने लूट लिए गए, जिनमें प्रसिद्ध मयूर सिंहासन भी शामिल था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिशों ने किले का लगभग 80% हिस्सा नष्ट कर दिया, संगमरमर की संरचनाएँ हटा दीं और सेना के लिए पत्थर की बैरकें बना लीं।
आजादी के बाद लाल किले का इस्तेमाल भी सैन्य बेस के रूप में किया गया। 2003 में वाजपेयी सरकार ने इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को सौंप दिया, जो अब इसके संरक्षण और देखरेख का कार्य करता है। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब सुल्ताना बेगम की याचिका पर कोई कानूनी राहत मिलने की संभावना नहीं है।