दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) के क्लस्टर इनोवेशन सेंटर (CIC) ने एक प्रस्ताव तैयार किया है, जिसके तहत मास्टर ऑफ साइंस (MSc) इन मैथेमेटिक्स एजुकेशन प्रोग्राम में मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षण समाप्त करने की सिफारिश की जाएगी। यह प्रोग्राम DU और जामिया मिलिया इस्लामिया के संयुक्त प्रयास से 2013 में शुरू किया गया था और इसे मेटा यूनिवर्सिटी कॉन्सेप्ट के तहत संचालित किया जाता है। CIC की गवर्निंग बॉडी इस प्रस्ताव पर अपनी बैठक में विचार करेगी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मौजूदा समय में इस प्रोग्राम में कुल 30 सीटें हैं। इसमें 12 सीटें अनारक्षित श्रेणी के लिए, छह सीटें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी-नॉन क्रीमी लेयर), चार सीटें मुस्लिम जनरल, तीन सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS), दो सीटें अनुसूचित जाति (SC) और एक-एक सीट अनुसूचित जनजाति (ST), मुस्लिम ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
डीयू के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “विश्वविद्यालय में किसी भी कोर्स के लिए धर्म आधारित आरक्षण नहीं होना चाहिए। यह नीति केवल वंचित तबकों के लिए जाति आधारित आरक्षण तक सीमित होनी चाहिए।” अधिकारी ने यह भी बताया कि पिछले कुछ वर्षों में इस प्रोग्राम का पूरा प्रवेश प्रक्रिया कम्प्यूटराइज्ड हो गया है और सभी छात्रों का दाखिला DU के माध्यम से ही होता है। ऐसे में डीयू की आरक्षण नीति लागू करना स्वाभाविक है।
साल 2013 में शुरू हुए इस प्रोग्राम का उद्देश्य उच्च शिक्षा में विभिन्न विश्वविद्यालयों के संसाधनों और विशेषज्ञता का समावेश करना है। मेटा यूनिवर्सिटी मॉडल के तहत, यह प्रोग्राम डीयू और जामिया मिलिया इस्लामिया के साझा प्रयास का परिणाम है। जब छात्र अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं, तो उन्हें डिग्री पर दोनों विश्वविद्यालयों के लोगो के साथ प्रमाणपत्र मिलता है। इस प्रोग्राम की प्रशासनिक जिम्मेदारी CIC के पास है और इसीलिए CIC का मानना है कि इसमें डीयू की नीतियों का पालन होना चाहिए। डीयू के अधिकारी ने यह भी बताया कि जब यह प्रोग्राम शुरू हुआ था, तब तय किया गया था कि 50% छात्रों का एडमिशन डीयू और 50% का जामिया से होगा। हालाँकि, वर्तमान आरक्षण नीति इस शुरुआती समझौते से मेल नहीं खाती। CIC के अनुसार, यह मुद्दा अब गंभीरता से लिया जा रहा है और इस पर विचार करने के बाद प्रस्ताव कुलपति के समक्ष रखा जाएगा।
बता दें कि डीयू और जामिया के बीच इस प्रोग्राम से भारत-अमेरिका की मेटा यूनिवर्सिटी कॉन्सेप्ट को प्रोत्साहित करना था, जिसका उद्देश्य छात्रों को बेहतर अवसर प्रदान करना था। हालाँकि जामिया मिलिया इस्लामिया ने इस मामले पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। इस प्रोग्राम की विशेषता यह है कि यह भारत का ऐसा पहला डिग्री प्रोग्राम है, जिसमें दोनों केंद्रीय विश्वविद्यालयों का लोगो होता है। CIC ने कहा कि यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसे हल करने के लिए दोनों विश्वविद्यालयों की सहमति की आवश्यकता होगी।
महत्व और संभावित प्रभाव:
- नीतिगत बदलाव का असर:
- यदि प्रस्ताव लागू होता है, तो धर्म आधारित आरक्षण समाप्त हो जाएगा, जिससे छात्रों का चयन जाति और अन्य आरक्षण श्रेणियों के आधार पर होगा।
- यह DU की आरक्षण नीति को अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों के साथ अधिक संगत बनाएगा।
- छात्र समुदाय में प्रतिक्रिया:
- मुस्लिम छात्रों और उनसे जुड़े संगठनों में असंतोष हो सकता है।
- अन्य विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक विशेषज्ञों के बीच भी बहस शुरू हो सकती है।
- सामाजिक और राजनीतिक आयाम:
- यह निर्णय व्यापक राजनीतिक बहस का हिस्सा बन सकता है, क्योंकि आरक्षण नीति हमेशा संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा रही है।
- केंद्र सरकार और उच्च शिक्षा आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।
- शैक्षणिक गुणवत्ता पर प्रभाव:
- धर्म आधारित आरक्षण समाप्त करने से चयन प्रक्रिया पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन आवश्यक होगा।