महाकुंभ-2025 का आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मिलन स्थल के रूप में भी अनोखा होगा। इस बार प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान जो विशेष घटना घटने जा रही है, वह है लॉरेन पॉवेल जॉब्स, स्टीव जॉब्स की पत्नी, का इस आयोजन में हिस्सा लेना।
लॉरेन, जो दुनिया की सबसे धनी महिलाओं में से एक हैं और एक प्रमुख कारोबारी के रूप में जानी जाती हैं, महाकुंभ में अपने पति के धर्म और आध्यात्मिक जुड़ाव के अनुसार भाग लेंगी। उनके द्वारा कल्पवास करने और साधुओं के संग सादगीपूर्ण जीवन बिताने की योजना एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा को दर्शाती है। उनके बारे में आध्यात्मिक गुरु स्वामी कैलाशानंद जी महाराज ने जानकारी दी कि उनका हिंदू नाम ‘कमला’ रखा गया है और वह उनके परिवार के समान हैं।
महाकुंभ में लॉरेन का योगदान और अनुभव:
- लॉरेन पॉवेल जॉब्स 13 जनवरी को महाकुंभ में शामिल होने के लिए प्रयागराज पहुंचेंगी और निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद जी के शिविर में 29 जनवरी तक ठहरेंगी।
- वह सनातन धर्म को समझने और अनुभव करने के लिए यहां कथा की यजमान भी बनेंगी, जो महाकुंभ की महत्वपूर्ण धार्मिक गतिविधियों में से एक है।
- उनकी यात्रा इस बात का प्रतीक है कि स्टीव जॉब्स जैसे लोग भी भारतीय धार्मिकता और संस्कृति से गहरे जुड़ाव रखते थे। जॉब्स का जीवन भारतीय संतों, विशेष रूप से बाबा नीम करोली महाराज और परमहंस योगानंद से प्रेरित रहा है।
स्टीव जॉब्स का भारतीय संस्कृति से जुड़ाव:
स्टीव जॉब्स का भारतीय संतों से जुड़ाव, खासकर बाबा नीम करोली के साथ उनके संपर्क, इस बात को प्रमाणित करता है कि वह सनातन परंपरा और आध्यात्मिकता में विश्वास रखते थे। उनका प्रसिद्ध यात्रा कैंची धाम में हुई थी, जहां उन्होंने जीवन के रहस्यों को समझने की कोशिश की थी। इसके अलावा, ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी’ पुस्तक ने उनके जीवन को गहरे तरीके से प्रभावित किया और उन्होंने इसे अपनी आध्यात्मिक यात्रा का मार्गदर्शक माना।
प्रयागराज में महाकुंभ का महत्व:
महाकुंभ न केवल एक धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा है, बल्कि यह एक संस्कार और संस्कृति का संगम भी है। इस बार के महाकुंभ में लॉरेन पॉवेल जॉब्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों का हिस्सा बनना यह दर्शाता है कि इस प्राचीन परंपरा और धर्म की आस्था सीमाओं से परे है। यह आयोजन सभी को एकजुट करता है और विश्वभर से श्रद्धालुओं को एक ही उद्देश्य से जोड़ता है—आध्यात्मिक शांति और आस्था।
महाकुंभ-2025 का यह आयोजन एक अद्वितीय उदाहरण होगा, जो धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक मिलन और आध्यात्मिकता के संगम का प्रतीक बनेगा।