मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित सांस्कृतिक संध्या के तीसरे दिन का कार्यक्रम श्रद्धालुओं के लिए भावनात्मक और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक बन गया। ग्वालियर की वीमेंस संस्था द्वारा मंचित भक्तिमति शबरी पर आधारित ‘लीला नाट्य’ को दर्शकों ने अत्यंत सराहा। गीतांजलि गिरिवाल के निर्देशन में 40 कलाकारों ने भीलनी शबरी की भक्ति और समर्पण की अद्वितीय प्रस्तुति दी। यह नाट्य प्रदर्शन श्रद्धालुओं के दिलों को छू गया और भक्ति की शक्ति का सजीव चित्रण किया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम में जयंत विश्वकर्मा और उनके दल का आल्हा गायन भी प्रभावी रहा, जो अपनी अनोखी शैली और उत्साहजनक प्रस्तुति के कारण आकर्षण का केंद्र बना। इसके अलावा, श्रीराम के 36 गुणों पर आधारित प्रदर्शनी, जैसे शत्रुनाशक, रणनीतिज्ञ, धर्मरक्षक, और कृतज्ञता, ने भी श्रद्धालुओं का ध्यान खींचा। इस प्रदर्शनी में चित्रों और शिल्पों के माध्यम से श्रीराम के आदर्शों को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया।
अन्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियां:
- गंगा वंदना: ज्ञान सिंह शाक्य के दल ने गंगा की महिमा का वर्णन करते हुए एक उत्कृष्ट प्रस्तुति दी।
- गणेश वंदना: रीवा की मनोभावना सिंह की प्रस्तुति ने भगवान गणेश के प्रति श्रद्धा को अभिव्यक्त किया।
- गुदुम बाजा लोकनृत्य: डिंडोरी के मायाराम धुर्वे और उनके दल ने जनजातीय परंपराओं का सुंदर प्रदर्शन किया, जिसमें शहनाई, टफला, मजीरा जैसे वाद्य यंत्रों की धुन ने समां बांध दिया।
- लांगुरिया नृत्य: भिंड के ज्ञान सिंह शाक्य दल ने भगवान राम को समर्पित यह नृत्य प्रस्तुत किया।
- बुंदेलखंड का बधाई नृत्य: “जन्म लिहिन रघुरड़्या बजे बधाइयां” और होली गीत “सिर बंधे मुकुट खेले होली” की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को उत्सवमयी माहौल में डुबो दिया।
इसके अतिरिक्त, एलईडी प्रकाश द्वारा वैदिक गणित के महत्व का प्रदर्शन भी श्रद्धालुओं के बीच चर्चा का विषय रहा। इन सभी कार्यक्रमों ने न केवल श्रद्धालुओं का मनोरंजन किया बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और भक्ति की गहराई को भी उजागर किया।
यह सांस्कृतिक संध्या न केवल एक धार्मिक आयोजन थी, बल्कि इसमें भारतीय कला, संगीत और परंपरा का समावेश भी था, जिसने इसे और भी अधिक रसमयी और यादगार बना दिया।