हिंडनबर्ग रिसर्च, जिसने शॉर्ट सेलिंग और विवादास्पद रिपोर्टों के माध्यम से कंपनियों को निशाना बनाया, ने अपने संचालन को बंद करने का ऐलान कर दिया है। इसके संस्थापक नेट एंडरसन ने 15 जनवरी, 2025 को एक बयान जारी कर इस फैसले की पुष्टि की।
नेट एंडरसन का बयान:
- उन्होंने कहा कि हिंडनबर्ग को बंद करने का फैसला पहले से ही योजना में था।
- उन्होंने इसे “एक लव स्टोरी” की तरह बताते हुए कहा कि इसका समापन किसी एक कारण से नहीं हुआ है।
- उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कोई बाहरी दबाव, स्वास्थ्य समस्या, या व्यक्तिगत संकट इसके पीछे कारण नहीं है।
हिंडनबर्ग रिसर्च का परिचय और मॉडल:
- 2017 में स्थापित यह फर्म बड़ी कंपनियों की खामियों और गड़बड़ियों पर विस्तृत रिसर्च करती थी।
- फर्म की रणनीति थी:
- कंपनियों के खिलाफ आरोप इकट्ठा करना।
- रिपोर्ट तैयार करना।
- रिपोर्ट जारी करने से पहले शेयर बाजार में शॉर्ट सेलिंग कर मुनाफा कमाना।
अडानी समूह विवाद और भारत पर प्रभाव:
- हिंडनबर्ग ने 2023 में अडानी समूह पर गंभीर आरोप लगाए, जिससे भारतीय शेयर बाजार में बड़ा नुकसान हुआ।
- हालांकि, जांच में अधिकांश आरोप अवास्तविक और सार्वजनिक जानकारी पर आधारित पाए गए।
- अडानी समूह धीरे-धीरे स्थिति से उबर गया, लेकिन भारतीय निवेशकों को भारी नुकसान हुआ।
समापन का संभावित कारण:
- अमेरिकी प्रशासन में बदलाव:
- 20 जनवरी, 2025 को डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति पद संभालने के साथ ही सत्ता परिवर्तन होगा।
- ट्रम्प प्रशासन में एलन मस्क जैसे उद्योगपतियों का प्रभाव बढ़ेगा।
- हिंडनबर्ग ने बायडेन प्रशासन के दौरान मस्क और उनकी कंपनियों (टेस्ला, ट्विटर) को निशाना बनाया था।
- मस्क के समर्थन वाली सरकार आने पर हिंडनबर्ग पर दबाव बढ़ने की संभावना थी।
- जॉर्ज सोरोस और फंडिंग:
- हिंडनबर्ग को जॉर्ज सोरोस से वित्तीय समर्थन मिलता था।
- सोरोस और मस्क के बीच गहरे मतभेद हैं।
- सत्ता परिवर्तन के बाद फंडिंग के स्रोतों पर प्रभाव पड़ सकता है।
हिंडनबर्ग रिसर्च का बंद होना एक युग के अंत जैसा है, जिसने शॉर्ट सेलिंग के माध्यम से कई कंपनियों को निशाना बनाया। हालांकि, इसके विवादास्पद मॉडल ने निवेशकों और कंपनियों को काफी नुकसान पहुंचाया। अडानी समूह पर इसके आरोप और अमेरिका में बदलते राजनीतिक परिदृश्य ने इसे नई चुनौतियों के बीच ला खड़ा किया। इन सबके बीच, इसका बंद होना एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है।