मानव सभ्यता द्वारा लोहे का उपयोग सबसे पहले भारत में हुआ था। तमिलनाडु से मिले लोहे के औजारों और बर्तनों से इस बात की पुष्टि हुई है। लैब में की गई जाँच से यह 5 हजार साल से अधिक पुराने पाए गए हैं। इससे पहले माना जाता था कि तुर्की में सबसे पहले लोहे का उपयोग चालू हुआ। ‘लौह युग’ का जनक अब भारत को माना जा सकता है।
तमिलनाडु में लौह युग के प्रमाण देने वाली रिपोर्ट मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने जारी की है। उन्होंने लिखा, “मैं बड़े गर्व के सामने विश्व के सामने यह घोषणा करता हूँ कि लौह युग की शुरुआत तमिल धरती पर हुई। विश्व-प्रसिद्ध संस्थानों के परिणामों के आधार पर, तमिलनाडु में लोहे का उपयोग ईसा पूर्व 4000 वर्ष की शुरुआत से होता है, जिससे यह स्थापित हो गया है कि दक्षिण भारत में लोहे का उपयोग 5,300 साल पहले जोरशोर से हो रहा था।”
तमिलनाडु में क्या मिला?
तमिलनाडु के थूथुकोड़ी जिले में सिवागालाई समेत कई इलाकों में 2019 से 2022 के बीच आठ अलग-अलग जगह खुदाई की गई थी। यह खुदाई एक कब्रिस्तान के आसपास हुई थी। यहाँ खुदाई में तमिलनाडु पुरातत्व विभाग को 160 बड़े मिट्टी के कलश मिले थे। इनमें से एक कलश पूरी तरीके से बंद मिला, जिसमे सदियों के बाद भी मिट्टी नहीं गई थी।
With immense pride and unmatched satisfaction, I have declared to the world:
“The Iron Age began on Tamil soil!”
Based on results from world-renowned institutions, the use of iron in Tamil Nadu dates back to the beginning of 4th millennium B.C.E., establishing that iron usage… pic.twitter.com/YYslKX7K5F
— M.K.Stalin (@mkstalin) January 23, 2025
इस कलश के भीतर एक मानव कंकाल, कुछ लोहे के औजार और धान के बीज भी मिले थे। सबसे पहले पुरातत्विकों ने धान की जाँच करवाई जो लगभग 3 हजार साल पुराना निकला। इसके बाद इस कलश और बाकी जगह से इकट्ठा हुए लोहे के सामान की जाँच हुई। यह सभी 2953 ईसा पूर्व से 3345 ईसा पूर्व (लगभग 5000 साल पुराने) के निकले।
इन कलश से इनमें चाकू, तलवार, छेनी, अंगूठी और कुल्हाड़ी जैसे सामान मिले हैं। यह लोहे को गला कर बनाए गए थे। इनकी जाँच एक्सेलरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (AMS) तकनीक से करवाई गई। यह तकनीक कार्बन डेटिंग का एक हिस्सा है। इससे पता चलता है कि कोई वस्तु कितनी पुरानी थी।
‘एंटिक्विटी ऑफ़ आयरन: रीसेंट रेडिओमेट्रिक डेट्स फ्रॉम तमिल नाडु’ नाम से जारी की गई इस रिपोर्ट में इस पूरी खुदाई और जाँच तथा क्या-क्या मिला, इसकी जानकारी दी गई है। इसे K राजन और R सिवानंथन ने लिखा है।
तुर्की का दावा बदला
सिवागालाई में मिली वस्तुओं की जाँच केवल एक ही जगह नहीं हुई। बल्कि इसे लखनऊ में स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान लैब, फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी अहमदाबाद और अमेरिका स्थित बीटा लैब्स में टेस्ट करवाया गया। तीनों ने ही साफ़ किया कि तमिलनाडु में मिले लोहे के औजार 5000 साल से अधिक पुराने हैं।
अब तक माना जाता रहा है कि तुर्की और सीरिया के इलाकों में गलाए हुए लोहे का सबसे पहले उपयोग हुआ। तुर्की में लगभग 3700-4000 वर्ष पहले रहने वाले हित्तित लोगों को लोहा उपयोग करने का श्रेय दिया जाता रहा है। इन इलाकों में खुदाई से लोहे के तीर-तलवार आदि मिले हैं।
तमिलनाडु में मिले लोहे के सामान और अलग-अलग लैब से उनके 5000 साल से अधिक पुराने होने की पुष्टि के बाद अब तुर्की का दावा पलट गया है। भारतीय पुरातत्व विशेषज्ञों ने भी इसे बड़ी खोज करार दिया है। पुरातत्व विशेषज्ञ दिलीप चक्रबर्ती ने इसे दुनिया के लिए बड़ी खोज बताया है।
दिलीप कुमार ने कहा, “दुनिया में पहली बार, गले लोहे का इतिहास 3 हजार साल पहले का पाया गया है। यह ना केवल भारत के इतिहास में, बल्कि विश्व के पुरातत्व के संदर्भ में भी एक महत्वपूर्ण खोज है।” ASI के पूर्व मुखिया राकेश तिवारी ने कहा है कि भारतीय पुरातत्व के मामले में एक नया मोड़ है।
डॉक्टर तिवारी ने कहा है कि अब तक भारत में लोहे का उपयोग ज्यादा से ज्यादा 1500 ईसा पूर्व में माना गया है। यह साबित करने के लिए आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में मिली वस्तुओं की जाँच भी हुई है। उन्होंने कहा कि अब नई खोज से यह 3000 साल पहले पहुँच गया है, जो कि एकदम अविश्वसनीय है।
गौरतलब है कि अब तक यह दावा होता रहा है कि भारत के लोगों का लोहे से परिचय तुर्की के लोगों ने करवाया। इस खोज के बाद यह दावा कमजोर पड़ गया है। उल्टे इस बात की अधिक संभावना है कि भारत से ही लोहा तुर्की या बाकी विश्व के इलाकों में पहुँचा हो।
उत्तर में ‘ताम्र युग’, दक्षिण में ‘लौह युग’
तमिलनाडु में ‘लौह युग’ के बारे में नई जानकारी देने वाली रिपोर्ट से भारत के इतिहास के विषय में और भी बातें सामने आई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जब उत्तर भारत में सिन्धु घाटी सभ्यता में ताँबे का उपयोग हो रहा था, लगभग उसी समय तमिलनाडु में लोहे का उपयोग हो रहा था।
रिपोर्ट में कहा गया है, “जब विंध्य के उत्तर (उत्तर भारत) में स्थित इलाकों में ने ताम्र युग चल रहा था, तो विंध्य के दक्षिण का क्षेत्र (विंध्य भारत) कामकाज में लाए जाने वाले ताँबे की कमी के चलते लौह युग में प्रवेश कर गया होगा।”
रिपोर्ट लिखने वाले K राजन ने कहा, “रेडियोकार्बन डेटिंग दर्शाती हैं कि जब सिंधु घाटी में ताम्र युग था, तब दक्षिण भारत लौह युग में था। इस अर्थ में, दक्षिण भारत का लौह युग और सिंधु का ताम्र युग एक ही समय में चल रहे थे।
उन्होंने कहा, “अब, हमने पाया है कि शिवगलाई और आदिचनल्लूर से मिले लोहे के औजार 2,500-3,000 ईसा पूर्व के हैं। आगे न केवल तमिलनाडु में बल्कि देश भर में अन्य स्थानों पर और अधिक स्थलों की खोज और खुदाई होनी चाहिए, ताकि अब तक जो कुछ भी हमने प्राप्त किया है, उसे और मजबूत किया जा सके।”
तमिलनाडु के पुरातत्व विभागके मुखिया उदयचंद्रन ने कहा, “अन्य धातुओं की तुलना में, लोहे को गलाने के लिए आपको 1,200 से 1,400 डिग्री सेल्सियस तक के उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। इसके लिए बेहतर तकनीक चाहिए होती है। यह दर्शाता है कि तमिल लोगों ने 5,300 साल पहले भी इस कौशल में महारत हासिल कर ली थी।”