महाकुंभ में आयोजित ज्ञान कुंभ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले का संबोधन शिक्षा और भारतीय भाषाओं के महत्व पर केंद्रित था। उन्होंने शिक्षा को मात्र व्यवसाय न मानकर उसे संस्कार निर्माण और राष्ट्रनिर्माण का माध्यम बनाने पर जोर दिया।
प्रमुख बिंदु:
✅ मातृभाषा और संस्कृति:
- मातृभाषा और मातृभूमि का कोई विकल्प नहीं होता।
- अगली पीढ़ी को अपनी मातृभाषा से जोड़ना हर माता-पिता का कर्तव्य है।
- मातृभाषा से कटने पर संस्कृति की समझ कमजोर हो जाती है।
✅ शिक्षा का उद्देश्य:
- केवल पुराने ज्ञान का उपयोग करने वाले न बनें, बल्कि नया ज्ञान सृजित करने वाले कर्मवीर बनें।
- शिक्षा को व्यवसाय न मानें, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का माध्यम बनाएं।
- शिक्षा से उत्तम चरित्र और संस्कारों का निर्माण होना चाहिए।
✅ भारतीय शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन:
- शिक्षा में बदलाव केवल सरकार का कार्य नहीं, बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है।
- यदि भारत को आत्मनिर्भर बनाना है तो छात्रों को भी आत्मनिर्भर बनाना होगा।
- देश के शिक्षाविदों, शिक्षकों और विचारकों को एक मंच पर लाकर शिक्षा में सुधार हेतु मंथन आवश्यक है।
✅ भारत की वैश्विक भूमिका:
- भारत के पास ज्ञान परंपरा, इतिहास और संसाधन उपलब्ध हैं, अब परिश्रम और संकल्प की जरूरत है।
- अगर शिक्षा और संस्कार के माध्यम से राष्ट्र निर्माण किया जाए, तो भारत को विश्वगुरु और परम वैभवशाली राष्ट्र बनाया जा सकता है।
दत्तात्रेय होसबाले ने शिक्षा और संस्कृति के एकीकरण पर बल देते हुए कहा कि भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए परिश्रम और प्रतिबद्धता से कार्य करना होगा। यह विचार नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के अनुरूप भी है, जो मातृभाषा में शिक्षा और भारतीय परंपराओं के पुनरुत्थान पर बल देती है।