विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में पश्चिमी देशों को लोकतंत्र पर आइना दिखाते हुए कहा कि भारत में लोकतंत्र समय के साथ और अधिक जीवंत हुआ है। उन्होंने बिना किसी देश का नाम लिए पश्चिमी देशों की आलोचना करते हुए कहा कि ग्लोबल साउथ में गैर-लोकतांत्रिक शक्तियों को प्रोत्साहित किया गया, जबकि वे खुद लोकतंत्र का ठेकेदार बनने की कोशिश करते रहे।
जयशंकर के मुख्य बिंदु:
✅ भारत में लोकतंत्र एक सिद्धांत नहीं, बल्कि निभाया गया वादा है।
✅ पश्चिम को अपनी सोच बदलनी चाहिए और बाकी दुनिया के लोकतांत्रिक मॉडल को भी अपनाना चाहिए।
✅ भारत का लोकतांत्रिक मॉडल उसकी परामर्शात्मक (consultative) और बहुलवादी (pluralistic) समाज की जड़ों में गहराई से समाहित है।
✅ लोकतंत्र पर कोई संकट नहीं, बल्कि भारत जैसे देशों में यह और अधिक मजबूत हुआ है।
✅ भारत की विशाल चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी और निर्विवाद है।
पश्चिमी देशों को करारा जवाब:
🔸 जयशंकर ने अपनी मतदान वाली स्याही लगी उंगली दिखाते हुए कहा कि “मैं अपेक्षाकृत निराशावादी पैनल में आशावादी व्यक्ति हूँ। यह मतदान का निशान है।”
🔸 उन्होंने बताया कि भारत में 90 करोड़ मतदाताओं में से 70 करोड़ लोगों ने मतदान किया, और एक ही दिन में वोटों की गिनती कर परिणाम घोषित किए गए, जिस पर कोई विवाद नहीं हुआ।
🔸 अमेरिकी सीनेटर एलिसा स्लोटकिन ने जब कहा कि “लोकतंत्र खाने की मेज पर भोजन नहीं रखता,” तो जयशंकर ने जवाब दिया कि भारत 80 करोड़ लोगों को पोषण सहायता देता है।
निष्कर्ष:
🔹 जयशंकर ने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र को लेकर पश्चिम की परिभाषा ही एकमात्र मानक नहीं है।
🔹 भारत न केवल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में मजबूती से खड़ा है, बल्कि अपने विकास मॉडल से दुनिया को एक नया दृष्टिकोण भी दे रहा है।
🔹 लोकतंत्र का संकट पश्चिम में हो सकता है, भारत में नहीं।