सोमवार, 7 अप्रैल 2025 की सुबह, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गोरखपुर समेत देश के पाँच शहरों में 11 स्थानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की।
यह छापेमारी समाजवादी पार्टी (सपा) के पूर्व विधायक विनय शंकर तिवारी से जुड़ी है।
उनके:
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गोरखपुर स्थित धर्मशाला आवास
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लखनऊ, नोएडा, मुंबई और दिल्ली स्थित परिसरों में भी रेड की गई।
यह कार्रवाई एक बड़े बैंक घोटाले, यानी ₹754 करोड़ की बैंक धोखाधड़ी के सिलसिले में की गई है।
मामले की पृष्ठभूमि: क्या है ₹754 करोड़ का बैंक घोटाला?
विनय शंकर तिवारी की कंपनी ‘गंगोत्री इंटरप्राइजेज लिमिटेड’ पर आरोप है कि उसने:
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वर्ष 2012 से 2016 के बीच विभिन्न बैंकों से ₹1,129.44 करोड़ का लोन लिया।
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लेकिन इस लोन की राशि को दूसरी शेल कंपनियों में ट्रांसफर कर दिया गया, और मूल कामकाज पर खर्च नहीं किया गया।
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बैंकों को ₹754.24 करोड़ का नुकसान हुआ — क्योंकि कंपनी ने लोन चुकाया नहीं।
इस घोटाले को PMLA (Prevention of Money Laundering Act) के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के तौर पर देखा जा रहा है।
अब तक क्या जब्त किया गया है?
ED पहले ही इस मामले में:
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₹30.86 करोड़ की 12 संपत्तियाँ जब्त कर चुकी है।
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इन संपत्तियों में गोरखपुर, लखनऊ, नोएडा की ज़मीन और फ्लैट शामिल हैं।
मुख्य आरोपी कौन हैं?
1. रीता तिवारी
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विनय शंकर तिवारी की पत्नी
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गंगोत्री इंटरप्राइजेज की प्रमुख निदेशक और सह-हस्ताक्षरकर्ता
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इस घोटाले की मुख्य आरोपी मानी गईं
2. अजीत पांडे
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गंगोत्री इंटरप्राइजेज में प्रमुख साझेदार
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धन के हस्तांतरण और फर्जी कंपनियों में लेन-देन के आरोपी
3. अन्य आरोपी:
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रॉयल एम्पायर मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड
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कंदर्प कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड
इन कंपनियों का प्रयोग मनी लॉन्ड्रिंग और संपत्ति छुपाने के लिए किया गया।
हरिशंकर तिवारी की विरासत और गोरखपुर का ‘शिकागो’ बनना
विनय शंकर तिवारी के पिता हरिशंकर तिवारी को पूर्वांचल की राजनीति और अपराध का ‘डॉन’ कहा जाता था।
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1980-90 के दशक में हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के बीच गैंगवॉर चला।
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इस गैंगवॉर की गूंज इतनी ज़्यादा थी कि BBC ने गोरखपुर को ‘शिकागो ऑफ ईस्ट’ कह दिया।
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बाद में हरिशंकर तिवारी राजनीति में आए और जेल से चुनाव जीतने वाले पहले विधायक बने।
उनके बेटे विनय शंकर तिवारी BSP से विधायक बने, फिर सपा में शामिल हुए।
राजनीतिक प्रभाव और ताजा असर
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यह रेड ऐसे समय में हुई जब उत्तर प्रदेश में सियासी सरगर्मियाँ तेज़ हैं।
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विपक्ष का आरोप है कि यह कार्रवाई राजनीतिक प्रतिशोध है।
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वहीं ED और CBI दोनों संस्थाएँ इसे वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ कानूनन कार्रवाई बता रही हैं।