केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पर दाखिल जवाब एक अहम कानूनी और सामाजिक बहस का केंद्र बन गया है। इसमें कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं जो वक्फ प्रशासन, सरकारी भूमि के अधिकार, और समावेशिता जैसे विषयों को छूते हैं।
क्या है मामला?
केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को संवैधानिक रूप से वैध ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। इन याचिकाओं में कहा गया था कि यह संशोधन संवैधानिक मूल्यों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
केंद्र सरकार की दलीलें – मुख्य बिंदु:
1. वक्फ संपत्ति का वैध पंजीकरण जरूरी
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मौखिक रूप से वक्फ घोषित संपत्तियों को पंजीकरण के बिना मान्यता नहीं दी जा सकती।
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पिछले 100 वर्षों से वक्फ के लिए पंजीकरण की परंपरा रही है।
2. गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति – समावेशिता का प्रतीक
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वक्फ परिषद/बोर्ड में अधिकतम 2 गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं।
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यह प्रशासनिक पारदर्शिता और समावेशिता को दर्शाता है, धार्मिक हस्तक्षेप नहीं।
3. सरकारी भूमि का वक्फ संपत्ति में उल्लेख – गलत और अनुचित
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सरकारी जमीन किसी धार्मिक समुदाय की संपत्ति नहीं हो सकती।
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कुछ मामलों में वक्फ रिकॉर्ड में जानबूझकर या त्रुटिपूर्ण रूप से सरकारी भूमि को वक्फ के रूप में दर्ज कर दिया गया था, जिसे राजस्व रिकॉर्ड द्वारा ठीक किया जाना जरूरी है।
4. मुतवल्ली का कार्य – धर्मनिरपेक्ष, न कि धार्मिक
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वक्फ का प्रशासनिक प्रमुख (मुतवल्ली) कोई मौलवी नहीं, बल्कि एक प्रशासक होता है।
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वक्फ एक वैधानिक निकाय है, न कि विशुद्ध रूप से धार्मिक संस्था।
कानूनी प्रक्रिया पर केंद्र का तर्क:
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सुप्रीम कोर्ट किसी कानून के प्रावधानों पर आंशिक अंतरिम रोक नहीं लगा सकता।
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या तो पूरा कानून न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है या नहीं।
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यह अधिनियम संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशों पर आधारित है — 36 बैठकें, 97 लाख से अधिक सुझाव, और 10 शहरों का दौरा।
विश्लेषण: यह मामला क्यों अहम है?
पक्ष | तर्क |
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सरकार का पक्ष | वक्फ संपत्ति की गैर-कानूनी विस्तार और सरकारी जमीन पर दावा रोकना |
चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता | संशोधन धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों में दखल देता है |
कानूनी दृष्टिकोण | क्या संसद द्वारा पारित विधेयक संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है? |