अब तक की न्यायिक कार्यवाही:
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मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के स्थान पर अब जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता में बेंच ने सुनवाई की।
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CJI खन्ना ने कहा कि वे अंतरिम आदेश भी सुरक्षित नहीं रखना चाहते, क्योंकि यह विषय गंभीर बहस और पूर्ण सुनवाई की मांग करता है।
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मामले को अब 15 मई 2025 को न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है।
न्यायमूर्ति भूषण गवई: अगला मुख्य न्यायाधीश
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वर्तमान CJI संजीव खन्ना 13 मई 2025 को रिटायर हो रहे हैं।
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जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई, भारत के 51वें CJI होंगे और उनका कार्यकाल 6 महीने 10 दिन का होगा।
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वे भारत के दूसरे दलित CJI होंगे, उनसे पहले जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन यह पद संभाल चुके हैं।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025: क्यों विवादित है?
🔹 पार्लियामेंट्री प्रक्रिया:
सदन | पक्ष में वोट | विरोध में वोट |
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लोकसभा | 288 | 232 |
राज्यसभा | 128 | 95 |
🔹 विवादास्पद प्रावधान (संभावित):
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वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण और अधिग्रहण – याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इसमें न्यायिक प्रक्रिया की अनदेखी की गई है।
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राज्य सरकारों की भूमिका में कटौती – कुछ दलों का आरोप है कि यह केंद्र द्वारा अल्पसंख्यक मामलों पर अत्यधिक नियंत्रण का प्रयास है।
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धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन – खासकर अन्य धर्मों के हितधारकों और संगठनों ने इसके खिलाफ आपत्तियाँ उठाई हैं।
कानूनी चुनौती और याचिकाएं:
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कई मुस्लिम संगठनों, राजनीतिक दलों और एनजीओ ने याचिकाएं दायर की हैं।
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याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 25-28 (धार्मिक स्वतंत्रता) और 300A (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
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CJI खन्ना ने खुद कहा, “पंजीकरण और आंकड़ों पर कुछ गंभीर प्रश्न उठाए गए हैं, जिन पर विचार जरूरी है।”
क्या आगे हो सकता है?
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15 मई से नए मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में विस्तृत सुनवाई की शुरुआत होगी।
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यह मामला आने वाले दिनों में संवैधानिक बेंच के समक्ष भी जा सकता है, अगर मूलभूत अधिकारों का प्रश्न गहराता है।
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निर्णय का असर वक्फ बोर्डों की भूमिका, समुदायों के धार्मिक अधिकार, और राज्य बनाम धर्म की संवैधानिक सीमाओं पर पड़ेगा।
राजनीतिक और सामाजिक विमर्श:
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इस कानून को लेकर ध्रुवीकृत मत देखने को मिल रहे हैं:
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कुछ इसे “सुधारात्मक कदम” बताते हैं जो वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता बढ़ाएगा।
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वहीं अन्य इसे “धार्मिक हस्तक्षेप और असंवैधानिक केंद्रीकरण” कहते हैं।
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वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 अब न केवल कानूनी परीक्षण, बल्कि लोकतांत्रिक संवेदना और धार्मिक अधिकारों की परीक्षा का विषय बन गया है। सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई आगे भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और अल्पसंख्यक अधिकारों की सीमाओं को स्पष्ट कर सकती है।