‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत में जहाँ सेना की कार्रवाई की व्यापक सराहना हो रही है, वहीं कुछ मीडिया संस्थानों और पत्रकारों की प्रतिक्रिया ने विवाद खड़ा कर दिया है। विशेष रूप से, ‘द वायर’ की वरिष्ठ पत्रकार आरफा खानम शेरवानी और संपादक सिद्धार्थ वरदराजन की टिप्पणियाँ आलोचना का केंद्र बनी हैं।
आरफा खानम शेरवानी और ‘द वायर’ की प्रतिक्रिया
‘द वायर’ के एक पैनल डिस्कशन में आरफा खानम शेरवानी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर सवाल उठाते हुए कहा कि पाकिस्तान का दावा है कि इस हमले में आम नागरिक मारे गए हैं, न कि आतंकवादी। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध नहीं होना चाहिए और निर्दोष नागरिकों की जान नहीं जानी चाहिए। उनकी इन टिप्पणियों को कई लोगों ने पाकिस्तान के दृष्टिकोण का समर्थन करने वाला बताया है।
सिद्धार्थ वरदराजन, ‘द वायर’ के संपादक, ने इस चर्चा के दौरान कोई आपत्ति नहीं जताई, जिससे उनकी संपादकीय भूमिका पर भी सवाल उठे हैं। आलोचकों का कहना है कि ‘द वायर’ ने इस ऑपरेशन के माध्यम से भारत की सैन्य कार्रवाई को कमतर आंकने की कोशिश की है।
‘The Wire’ की आरफा खानम शेरवानी ने चलाया पाकिस्तान का एजेंडा
इस मिशन की जानकारी सार्वजनिक होने के बाद प्रोपेगेंडा चलने वाले न्यूज पोर्टल और पत्रकारों में इस बात की खलबली मच गई कि किस तरह से पाकिस्तान को ‘पीड़ित’ दिखलाया जाए। किस तरह से बताया जाए की जो मारे गए वह आतंकी नहीं थे और किस तरह से भारत सरकार के खिलाफ एक नया जहर घोला जा सके।
इस कड़ी में प्रोपेगेंडा न्यूज पोर्टल ‘द वायर’ की सीनियर एडिटर आरफा खानम शेरवानी ने एक पैनल डिस्कशन कर डाला। इसने कुछ वामपंथी पत्रकारों को शामिल कर लिया गया और इस पैनल चर्चा में आरफा ने ये तक कह डाला कि जो मारे गए वह आतंकी नहीं थे बल्कि आम नागरिक थे।
पाकिस्तान में आतंकी नहीं सिवलियन मारे गए है- आरफ़ा @HMOIndia इनसे सख्ती और शक्ति द्वारा निपटिये।
उधर वालो से अभी ख़तरनाक है ये। pic.twitter.com/WSqLEq9RHh
— Baliyan (@Baliyan_x) May 7, 2025
आरफा खानम ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के नाम से शुरू होकर पूरे मिशन की चिरौरी करते हुए लगभग एक घंटे के वीडियो में ये बताने की कोशिश की कि मिशन में क्या क्या खामियाँ रहीं, इस मिशन से पाकिस्तान के लोग किस तरह परेशान हो रहे हैं और इस मिशन के जरिए मोदी सरकार क्या-क्या फायदे लेगी।
आरफा ने सबसे पहले इसी बात पर चर्चा जरूरी समझी कि इस मिशन का नाम सिंदूर रखा तो उसे किस तरह से लिखा गया। आरफा ने कहा, “भारतीय सेना ने पारंपरिक तरीकों से हटकर मिशन जानकारी सोशल मीडिया हैंडल से दी गई। इसमें पोस्टर लगाया गया और उसमें सिंदूर को इस तरह लिखा गया जैसे भारत में शादीशुदा औरतें अपनी माँग में सिंदूर भरती हैं और साथ में ये भी कहा है कि न्याय हुआ।”
इसके बाद आरफा ने भारत ने एयरस्ट्राइक पर सवाल जवाब किए। पैनल डिस्कशन में कहा गया कि हमारे पास सिर्फ भारत सरकार और पाकिस्तान की ओर से किए गए दावे ही हैं कि उन्होंने मिशन में क्या किया है।
आरफा ने पैनलिस्ट्स से पूछा कि भारत के दर-दर से और घर-घर आवाज आ रही थी कि लोगों को जंग चाहिए। तो क्या ये जंग है? इसके जवाब में पैनलिस्ट और वरिष्ठ पत्रकार राहुल बेदी ने कहा, “भारत ने पाकिस्तान के 9 ठिकानों पर हमला किया है तो इसकी जवाबी हमले 100% होंगे और यह कहाँ होंगे हमें नहीं पता है। मिलिट्री पर या एयरफोर्स पर हमले हो सकते हैं।”
अपने पैनल डिस्कशन में आरफा ने पाकिस्तान सरकार की बातें इतनी मजबूती से रखी मानो ऐसा लग रहा हो कि वह पाकिस्तान की कोई प्रवक्ता हों। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान कह रहा है कि जो लोग मारे गए हैं उनमें कोई आतंकवादी नहीं है। ऐसे में जितने हमले हुए हैं उनमें कोई आतंकवादी नहीं मारा है बल्कि आम नागरिकों की मौत हुई है।”
आरफा के इस बयान से लोगों में काफी गुस्सा बढ़ गया। लोगों का कहना है कि देश के लिए खड़े होने से ज्यादा जरूरी पाकिस्तान को समर्थन देना नहीं हो सकता, लेकिन प्रोपेगंडा चलाने वाले इन पत्रकारों के लिए पाकिस्तान को पीड़ित दिखलाना शायद सबसे जरूरी है। राहुल बेदी ने कहा कि इस मिशन से पीएम मोदी अपना राजनीतिक फायदा ज़रूर उठाएँगे।
आलोचना और प्रतिक्रिया
कई मीडिया रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने आरफा खानम शेरवानी और ‘द वायर’ की इस रिपोर्टिंग को पाकिस्तान के प्रचार तंत्र के अनुरूप बताया है। उनका मानना है कि इस तरह की रिपोर्टिंग से भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कमजोर होती है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हानिकारक हो सकता है।
निष्कर्ष
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद की मीडिया कवरेज ने यह स्पष्ट किया है कि आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते समय पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसी रिपोर्टिंग जो बिना पुष्टि के दावों को प्रसारित करती है, वह न केवल जनता को भ्रमित कर सकती है, बल्कि राष्ट्रीय हितों को भी नुकसान पहुँचा सकती है।