उत्तर प्रदेश के बहराइच में इस्लामी आक्रान्ता सैयद सलार मसूद गाजी की दरगाह पर होने वाले जेठ मेला को लेकर अनुमति देने से प्रशासन ने मना कर दिया है। इसके विरोध में इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुँची मस्जिद कमिटी को भी कोई राहत नहीं मिली है। इस मेले में लाखों की भीड़ हर साल जुटा करती थी। इससे पहले उत्तर प्रदेश के संभल में सालार मसूद के नाम पर होने वाले मेले को भी अनुमति देने से प्रशासन ने इनकार कर दिया था।
इस मामले का सारांश इस प्रकार है:
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मसूद गाजी की दरगाह पर मेला प्रतिबंधित:
उत्तर प्रदेश के बहराइच में स्थित सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर हर साल लगने वाले जेठ मेले को प्रशासन ने 2025 में अनुमति नहीं दी है।-
प्रशासन ने कानून-व्यवस्था और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए यह फैसला लिया है।
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इसी तरह का मेला संभल में भी पहले रद्द किया जा चुका है।
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हाई कोर्ट का रुख:
दरगाह कमिटी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की थी, लेकिन कोर्ट ने कोई अंतरिम राहत नहीं दी है।-
अगली सुनवाई 12 मई, 2025 को होगी।
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प्रशासन का पक्ष:
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प्रशासन का कहना है कि धार्मिक गतिविधियों पर प्रतिबंध नहीं, बल्कि बाहरी परिसर में लगने वाले मेले पर रोक लगाई गई है।
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यह निर्णय सुरक्षा, शांति और स्थानीय विरोध को ध्यान में रखते हुए लिया गया।
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इतिहास की पृष्ठभूमि:
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सालार मसूद गाजी को महमूद गजनवी का भांजा और सेनापति माना जाता है।
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वह भारत में लूटपाट और हिन्दू विरोधी गतिविधियों के लिए जाना जाता है।
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उसका मुकाबला हिन्दू राजा सुहेलदेव से हुआ था, जिन्होंने 1034 ईस्वी में उसे हराकर मार गिराया था।
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हिंदू संगठनों का विरोध:
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वे इसे एक आक्रांता की स्मृति में लगने वाला मेला मानते हैं और लगातार इसका विरोध करते आए हैं।
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साथ ही वे राजा सुहेलदेव के सम्मान में कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं।
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व्यापक दृष्टिकोण:
यह मामला भारत के सामूहिक ऐतिहासिक स्मृति, धार्मिक भावनाओं और सामाजिक तानेबाने से जुड़ा हुआ है।
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एक तरफ़ कुछ समुदाय इसे आस्था और परंपरा का विषय मानते हैं,
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दूसरी तरफ़ कुछ लोग इसे इतिहास के आक्रांताओं का महिमामंडन मानकर विरोध करते हैं।
प्रशासन का निर्णय क्यों अहम है:
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कानून व्यवस्था को प्राथमिकता देना ज़रूरी है, विशेषकर तब जब किसी आयोजन के कारण सांप्रदायिक तनाव की आशंका हो।
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धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार संविधान में सुरक्षित है, लेकिन इसका प्रयोग सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा की शर्तों के अधीन है।