भारत-पाकिस्तान के मौजूदा सैन्य तनाव, भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई और राष्ट्रीय स्तर पर उठाए गए प्रतिक्रियाओं की व्यापक झलक प्रस्तुत करती है। इस पृष्ठभूमि में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान एक सामाजिक और नैतिक समर्थन के रूप में सामने आया है, जो राष्ट्र के सामूहिक संकल्प को और मज़बूत करता है।
“ऑपरेशन सिंदूर” और आरएसएस प्रमुख का बयान: एक राष्ट्रीय आह्वान
हमले की पृष्ठभूमि:
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पहलगाम में आतंकियों ने हिंदू तीर्थयात्रियों पर हमला किया।
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इसमें निर्दोष नागरिकों की जान गई, जो पूरे देश को झकझोर देने वाली घटना थी।
भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई:
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पाकिस्तान में मौजूद आतंकी लॉन्च पैड और ठिकानों को लक्ष्य बनाकर कार्रवाई की गई।
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सेना ने कई आतंकियों को ढेर किया और बुनियादी ढांचे को नष्ट किया।
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इसे “ऑपरेशन सिंदूर” नाम दिया गया, जो बलिदान और बदले के प्रतीक के रूप में सामने आया है।
मोहन भागवत का बयान:
तीन प्रमुख बातें:
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सरकार और सेना की सराहना:
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भागवत ने कहा कि सेना की यह निर्णायक कार्रवाई देश के स्वाभिमान और आत्मगौरव को बढ़ाने वाली है।
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पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई जरूरी:
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आतंकियों के ढांचे और सहयोगी नेटवर्क को नष्ट करना अनिवार्य और अपरिहार्य बताया गया।
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देशवासियों से अनुशासन और एकता की अपील:
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सरकारी सूचनाओं का पालन करें।
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राष्ट्रविरोधी ताकतों के प्रोपेगेंडा और अफवाहों से बचें।
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सैन्य और प्रशासनिक जरूरतों में सहयोग करें।
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महत्व और संदेश:
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यह बयान न सिर्फ सैनिक कार्रवाई का समर्थन करता है, बल्कि एक सामाजिक चेतना का निर्माण भी करता है।
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इससे यह स्पष्ट संकेत जाता है कि इस संघर्ष में देश केवल सरकार या सेना तक सीमित नहीं, बल्कि हर नागरिक की भागीदारी भी ज़रूरी है।
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यह संकट की घड़ी में राष्ट्रीय एकता, संयम और अनुशासन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
“ऑपरेशन सिंदूर” केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संकल्प का प्रतीक बन गया है। आतंकवाद के खिलाफ यह संघर्ष सिर्फ सीमाओं पर नहीं, बल्कि हर घर, हर नागरिक के मन में भी लड़ा जा रहा है।