पश्चिम बंगाल पुलिस ने करोड़ों रुपये के फर्जी पासपोर्ट घोटाले की जांच के दौरान एक बड़ा खुलासा किया है। जांचकर्ताओं ने कलकत्ता हाई कोर्ट में दाखिल एक रिपोर्ट में बताया कि कम से कम 37 ऐसे पासपोर्ट जारी किए गए हैं, जिनके धारकों का कोई अस्तित्व ही नहीं है। जांच टीम द्वारा की गई फील्ड वेरिफिकेशन और पूछताछ में सामने आया कि जिन पतों पर इन लोगों के रहने का दावा किया गया था, वहां न तो कभी कोई व्यक्ति रहा और न ही उनका कोई रिकॉर्ड मिला। इससे पासपोर्ट वेरिफिकेशन की प्रक्रिया में गहरी खामियों की पुष्टि हुई है।
नियमों के अनुसार, पासपोर्ट जारी करने से पहले संबंधित थाने के पुलिसकर्मियों को आवेदक के पते पर जाकर जांच करनी होती है। लेकिन इस मामले में फिजिकल वेरिफिकेशन या तो किया ही नहीं गया या फिर जानबूझकर झूठी रिपोर्ट दी गई। इस मामले में दो पुलिसकर्मियों को आरोपित बनाया गया है। इनमें एक कोलकाता पुलिस के सेवानिवृत्त सब-इंस्पेक्टर अब्दुल हई हैं, जबकि दूसरा आरोपित मोहम्मद इमरान नामक होम गार्ड है, जो हुगली जिले के चंदननगर पुलिस कमिश्नरेट से जुड़ा था। सूत्रों के मुताबिक, यह मामला इसलिए और भी गंभीर हो जाता है क्योंकि हाल के वर्षों में कई बांग्लादेशी नागरिकों के पास भारतीय और बांग्लादेशी दोनों देशों के पासपोर्ट पाए गए हैं।
जांच में सामने आया है कि कई विदेशी नागरिक वीजा पर भारत आए और बाद में फर्जी दस्तावेजों के जरिए भारतीय नागरिकता और पासपोर्ट हासिल कर लिए। इसी रैकेट के जरिए फर्जी पहचान पत्र, पासपोर्ट और यहां तक कि हवाला नेटवर्क भी संचालित किए जा रहे थे।
इस बीच, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कोलकाता के उत्तरी उपनगरों से एक पूर्व पाकिस्तानी नागरिक आज़ाद मलिक को गिरफ्तार किया है। आरोप है कि वह फर्जी पासपोर्ट और वीज़ा बनाने के अवैध धंधे के साथ-साथ हवाला लेन-देन का भी संचालन कर रहा था। जांच में यह भी सामने आया कि उसने पहले फर्जी दस्तावेजों के जरिए बांग्लादेश की नागरिकता हासिल की, फिर उसी से भारतीय पासपोर्ट भी बनवा लिया।