पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर चर्चा में हैं, लेकिन इस बार उनके दावे न केवल अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, बल्कि भारत की संप्रभुता और रणनीतिक फैसलों की अवहेलना भी करते हैं। ट्रंप का कहना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया गोलीबारी को रुकवाने का श्रेय उन्हें जाता है, लेकिन भारत ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया है।
भारत का स्पष्ट जवाब: ऑपरेशन सिंदूर पूरी तरह हमारा निर्णय
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने 13 मई को स्पष्ट कहा कि ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद गोलीबारी रोकने का फैसला भारत का था, न कि किसी बाहरी दबाव का परिणाम। भारत ने न तो अमेरिका से कोई मध्यस्थता मांगी और न ही कोई औपचारिक युद्धविराम हुआ है। “यह भारत की सैन्य रणनीति का हिस्सा था, जिसमें पाकिस्तान को भारत की ताकत और सख्त नीति के आगे झुकना पड़ा,” जायसवाल ने कहा।
ट्रंप का परमाणु युद्ध रोकने का दावा भी निराधार
ट्रंप ने हाल ही में एक कार्यक्रम में दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को एक संभावित परमाणु युद्ध से बचा लिया। इस पर भारत ने दो टूक कहा कि ऑपरेशन सिंदूर पारंपरिक सैन्य कार्रवाई थी और उसमें किसी भी परमाणु खतरे की चर्चा नहीं हुई थी। पाकिस्तान ने भी किसी परमाणु एंगल को खारिज किया है।
ट्रंप के ‘व्यापारिक दबाव’ के दावे को भी भारत ने नकारा
ट्रंप ने यह भी कहा कि उनके व्यापारिक दबाव के चलते भारत और पाकिस्तान समझौते को तैयार हुए। विदेश मंत्रालय ने इस दावे को “पूरी तरह निराधार” बताया। जायसवाल ने स्पष्ट किया कि अमेरिका-भारत के बीच हुई किसी भी बातचीत में व्यापार का जिक्र तक नहीं हुआ। भारत के सभी निर्णय राष्ट्रीय हितों के अनुसार लिए गए।
क्यों ट्रंप के दावे खतरनाक हैं?
ट्रंप के बयान यह धारणा देते हैं कि भारत और पाकिस्तान बिना किसी ठोस कारण के लड़ने वाले दो गैर-जिम्मेदार राष्ट्र हैं, जिन्हें एक “ग्लोबल मसीहा” ने शांति सिखाई। यह न केवल भारत की कूटनीतिक परिपक्वता का अपमान है, बल्कि इस क्षेत्र की जटिलताओं की भी अवहेलना है।
भारत को कोई दिशा दिखाने की जरूरत नहीं
भारत पिछले 75 वर्षों से पाकिस्तान के साथ संघर्ष, संवाद और रणनीतिक संतुलन के साथ व्यवहार करता आया है। उसे किसी ट्रंप या विदेशी नेता से यह सीखने की आवश्यकता नहीं कि कब हमला करना है और कब रुकना है। मोदी सरकार की नीति स्पष्ट है – आतंकवाद का कोई भी हमला अब सीधे युद्ध की कार्रवाई मानी जाएगी, और उसके लिए सिर्फ आतंकी संगठन नहीं, बल्कि पाकिस्तान की सत्ता और सेना भी जिम्मेदार होगी।
ट्रंप की विदेश नीति: खोखले वादों और भ्रामक आत्ममुग्धता का पुलिंदा
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निष्कर्ष: भारत की नीति, भारत की प्राथमिकता
भारत-पाकिस्तान के बीच किसी भी रणनीतिक निर्णय का आधार भारत का राष्ट्रीय हित, सैन्य परिपक्वता और राजनीतिक संकल्प होता है – न कि ट्रंप जैसे नेताओं के प्रचारवादी दावे। भारत ने दुनिया को यह साफ संदेश दिया है कि वह अब न आतंकवाद बर्दाश्त करेगा, न बाहरी दबाव।