भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर से आए शरणार्थियों को शरण दी जा सके, सुप्रीम कोर्ट ने आज एक श्रीलंकाई नागरिक की शरण की याचिका को खारिज करते हुए ये अहम टिप्पणी की। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ एक श्रीलंकाई नागरिक की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे 2015 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) से जुड़े होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था, जो एक समय श्रीलंका में सक्रिय एक आतंकवादी संगठन हुआ करता था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां और निर्णय
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“भारत कोई धर्मशाला नहीं है।”
➤ न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत सभी देशों के शरणार्थियों को शरण देने का स्वाभाविक दायित्व नहीं उठा सकता, विशेषकर जब देश की आबादी पहले से ही 140 करोड़ से अधिक है। -
अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं
➤ अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की हिरासत कानून के तहत हुई है, इसलिए यह जीवन के अधिकार (Article 21) का उल्लंघन नहीं है। -
अनुच्छेद 19 का लाभ नहीं मिलेगा
➤ यह केवल भारतीय नागरिकों के लिए उपलब्ध है, जबकि याचिकाकर्ता विदेशी है। -
“आप किसी और देश में चले जाएं”
➤ जब याचिकाकर्ता के वकील ने श्रीलंका में खतरे की बात दोहराई, तो सुप्रीम कोर्ट ने उसे किसी अन्य देश में शरण लेने की सलाह दी।
कानूनी और नीति-निर्माण से जुड़ी प्रमुख बातें
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भारत की शरणार्थी नीति
➤ भारत ने 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
➤ भारत की शरणार्थी नीति विधायी रूप से निर्धारित नहीं है, बल्कि प्रशासनिक फैसलों और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर आधारित है। -
राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेशी नागरिकों की जांच
➤ LTTE जैसे प्रतिबंधित संगठनों से जुड़ाव भारत के लिए सुरक्षा चिंता का विषय है।
➤ अदालत ने राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दी। -
संविधान और विदेशी नागरिक
➤ अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) विदेशी नागरिकों को भी कुछ हद तक सुरक्षा देता है।
➤ लेकिन अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता के अधिकार) केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होता है।
इस फैसले के निहितार्थ (Implications)
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शरणार्थी नीति को लेकर एक स्पष्ट संकेत: भारत अब सख्त रुख अपना रहा है, खासकर जब सुरक्षा या अवैध आव्रजन की आशंका हो।
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राजनीतिक-राजनयिक संकेत: यह संदेश सिर्फ श्रीलंका ही नहीं, अन्य पड़ोसी देशों के लिए भी है कि भारत का असीम सहनशीलता का दृष्टिकोण अब नीति-आधारित संतुलन में बदला जा रहा है।
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आंतरिक सुरक्षा को प्राथमिकता: अदालत ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रहित, अधिकारों से ऊपर रखा जाएगा जब मामला विदेशी नागरिक से जुड़ा हो।
भारत मानवीय मूल्यों का पक्षधर है, लेकिन वह एक संपूर्ण विश्व का शरण स्थल नहीं बन सकता, विशेषकर जब उस व्यक्ति का अतीत संदेहास्पद (LTTE से जुड़ा) हो। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय राष्ट्र की सुरक्षा, संवैधानिक सीमाओं, और विदेशी नागरिकों के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास है।