लेफ्टिनेंट जनरल हनुवंत सिंह की वीरगाथा भारतीय सैन्य इतिहास के स्वर्णिम अध्यायों में से एक है। बाड़मेर जिले के जसोल गांव में जन्मे इस महावीर योद्धा ने न केवल युद्धभूमि पर शौर्य दिखाया, बल्कि अपने अदम्य साहस से भारतीय सेना की प्रतिष्ठा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ऊंचा किया।
1971 के युद्ध में वीरता की मिसाल:
- बसंतर की लड़ाई (Shakargarh Sector) 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच सबसे निर्णायक टैंक युद्धों में से एक था।
- लेफ्टिनेंट जनरल हनुवंत सिंह, 17 पूना हॉर्स रेजीमेंट के कमांडिंग ऑफिसर थे।
- इस लड़ाई में उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 48 टैंकों को नष्ट किया, जिससे दुश्मन को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा।
- इस युद्ध में लेफ्टिनेंट अरुण क्षेत्रपाल शहीद हुए, जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
- हनुवंत सिंह को उनकी बहादुरी के लिए महावीर चक्र प्रदान किया गया।
“फक्र-ए-हिन्द” का खिताब:
- पाकिस्तान की सेना ने स्वयं उनके साहस को स्वीकारते हुए उन्हें “फ़क्र-ए-हिंद” की उपाधि दी — यह उनके शौर्य का सबसे अनोखा और दुर्लभ सम्मान है।
जसोल गांव में टैंक की तैनाती:
- सेना ने उनके पैतृक गांव जसोल में टी-55 टैंक तैनात किया है — यह न केवल एक सैन्य प्रतीक है, बल्कि ग्रामीणों के लिए गर्व का स्तंभ भी।
- यह भारत में संभवतः पहला उदाहरण है, जहां किसी सैनिक के सम्मान में उनके गांव में टैंक स्थापित किया गया हो।
हनुवंत सिंह का जीवन परिचय:
- जन्म: जसोल, बाड़मेर, राजस्थान के महेचा राठौड़ राजपूत परिवार में।
- सेना में प्रवेश: 1949, नेशनल डिफेंस अकादमी (NDA) के जरिए।
- युद्ध अनुभव: 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में सक्रिय भागीदारी।
- कमांड: 17 पूना हॉर्स रेजीमेंट का नेतृत्व।
सैन्य परंपरा का गौरव:
- जसोल गांव आज भी जब भारत-पाक तनाव होता है, तो गर्व से कहता है – “हम हनुवंत के गांव से हैं।”
- यह विरासत युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा है कि समर्पण, नेतृत्व और साहस से कोई भी व्यक्ति देश का गौरव बन सकता है।