मुख्य बिंदु:
- स्थान: बसवनबागेवाड़ी, विजयपुरा, कर्नाटक
- घटना: प्याज के दाम मात्र 200 रुपये प्रति क्विंटल मिलने पर किसान ने सड़क पर प्याज पलटा और उस पर लेट गया।
- किसान की उम्मीद: कम से कम 800-1000 रुपये प्रति क्विंटल।
- कृषि उत्पाद: अच्छी गुणवत्ता की प्याज।
मुद्दे की तह में:
1. किसानों की लागत और हानि
- एक क्विंटल प्याज उगाने में 400-600 रुपये तक की लागत आती है (बीज, सिंचाई, श्रम, भंडारण, परिवहन आदि को जोड़कर)।
- 200 रुपये/क्विंटल की नीलामी दर मतलब सीधा घाटा।
2. बाजार में असंतुलन और सरकारी हस्तक्षेप की कमी
- नीलामी व्यवस्था में पारदर्शिता नहीं।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्याज जैसी फसलों पर लागू नहीं होता।
- सरकारी एजेंसियों की खरीद भी बहुत सीमित होती है, जिससे किसान बाजार के रहमोकरम पर रहते हैं।
3. किसान का विरोध प्रतीकात्मक नहीं, बेहद यथार्थवादी था
- प्याज को “अपने बच्चे” जैसा मानने वाला किसान जब उसे हाईवे पर फेंक देता है, तो वो सिर्फ नाराज़ नहीं होता—वो टूट चुका होता है।
- इस घटना ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि भारत का किसान अब गुस्से से ज्यादा बेबसी की स्थिति में है।
प्रश्न जो उठने चाहिए:
- सरकार प्याज, टमाटर, आलू जैसे मूल्य-संवेदनशील उत्पादों के लिए स्थायी MSP या मूल्य स्थिरता तंत्र क्यों नहीं लागू करती?
- क्या ई-मंडी, कृषि तकनीक, और डिजिटल नीलामी किसानों तक वास्तविक लाभ पहुँचा पा रही है?
- यदि किसान की फसल सस्ती बिके और आम जनता को फिर भी महंगा दाम देना पड़े, तो मुनाफा आखिर कौन खा रहा है?
सम्भावित समाधान:
- प्याज जैसी फसलों के लिए मूल्य स्थिरीकरण फंड बनाया जाए।
- सरकारी खरीद के दायरे में प्याज को लाया जाए, ख़ासकर न्यूनतम दाम पर।
- प्राइवेट और सरकारी कोल्ड स्टोरेज सुविधा बढ़ाई जाए ताकि किसान को मजबूरी में फसल न बेचना पड़े।
- कृषि बाजारों में पारदर्शिता और निगरानी व्यवस्था को मज़बूत किया जाए।
अंतिम बात:
यह सिर्फ एक किसान की चीख नहीं थी—यह उस व्यवस्था के लिए सवाल है जो कहती है “जय जवान, जय किसान”, लेकिन ज़मीन पर किसान को सड़क पर लेटने को मजबूर कर देती है।