दिल्ली के शाहदरा क्षेत्र में स्थित एक गुरुद्वारे को लेकर उत्पन्न हुए विवाद पर देश की सर्वोच्च न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है, जो धार्मिक स्थलों की ऐतिहासिकता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह विवाद उस समय गहराया जब दिल्ली वक्फ बोर्ड ने यह दावा किया कि जिस भूमि पर यह गुरुद्वारा स्थित है, वह वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। वक्फ बोर्ड ने इसके समर्थन में गुरुद्वारा प्रबंधन से ₹10 लाख की मांग करते हुए दावा किया कि यह भूमि पूर्व में एक मस्जिद की थी। हालांकि, गुरुद्वारा सिंह सभा ने इसका जोरदार विरोध करते हुए अदालत को बताया कि यह जमीन उन्होंने विधिवत खरीदी है और वे इसके वैध व कानूनी मालिक हैं।
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ — न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा — के समक्ष हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने गहराई से सभी पक्षों की दलीलें सुनीं और दस्तावेजों का परीक्षण किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड अपने दावे के समर्थन में पर्याप्त सबूत प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा। न तो यह प्रमाणित किया जा सका कि यह भूमि कभी वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज थी और न ही यह साबित हो सका कि यह भूमि कभी मस्जिद के रूप में प्रयुक्त होती रही थी।
जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि यह गुरुद्वारा 1947 से पूर्व से अस्तित्व में है और यहां लगातार धार्मिक गतिविधियां जैसे अरदास, पाठ, और अन्य गुरमत कार्यक्रम संचालित होते आ रहे हैं। उन्होंने कहा, “अगर एक बार गुरुद्वारा बन गया है, तो उसे वैसे ही चलने देना चाहिए।” कोर्ट ने यह भी कहा कि गुरुद्वारा सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि एक पवित्र स्थल है, जिसका महत्व श्रद्धालुओं की आस्था और परंपरा से जुड़ा है।
इससे पूर्व निचली अदालत और अपील अदालत ने वक्फ बोर्ड के पक्ष में निर्णय दिए थे, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने इन निर्णयों को पलटते हुए गुरुद्वारे के पक्ष में फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराते हुए वक्फ बोर्ड की विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज कर दिया।
इस निर्णय के साथ सुप्रीम कोर्ट ने न केवल गुरुद्वारे की ऐतिहासिकता और धार्मिक गतिविधियों की निरंतरता को मान्यता दी, बल्कि यह भी स्पष्ट संदेश दिया कि धार्मिक स्थलों पर दावा करने के लिए ठोस और वैध प्रमाण आवश्यक हैं। साथ ही, यह निर्णय भारत में धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक स्थलों की रक्षा को लेकर न्यायपालिका की सजग भूमिका को भी रेखांकित करता है। अब इस फैसले के बाद गुरुद्वारे की धार्मिक गतिविधियां पूर्ववत सुचारु रूप से चलती रहेंगी, और श्रद्धालु बिना किसी बाधा के अपने धर्म का पालन करते रह सकेंगे।