2024 की शुरुआत में राजनीतिक रूप से मजबूती दिखाने वाले उद्धव ठाकरे को लोकसभा चुनाव के बाद बड़ा झटका लगा, और अब महाराष्ट्र की राजनीति में वापसी के लिए वह ठाकरे परिवार की ताकत को फिर से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब उनसे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे से गठबंधन को लेकर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र के दिल में जो होगा, वही होगा। शिवसैनिकों के दिल में कोई भ्रम नहीं है, और MNS के दिमाग में भी नहीं। हम कोई संदेश नहीं देंगे, हम सीधे खबर देंगे।” इस बयान से संकेत मिलता है कि दोनों ठाकरे भाइयों के बीच सकारात्मक बातचीत चल रही है, लेकिन सत्ता साझेदारी और नेतृत्व को लेकर स्पष्टता अभी बाकी है।
राज ठाकरे की पहल पर शुरू हुई बातचीत लंबे समय से ठंडी पड़ी थी, लेकिन अब संकेत मिल रहे हैं कि शिवसेना (उद्धव गुट) और MNS आने वाले महाराष्ट्र विधानसभा और नगर निगम चुनावों में एकजुट हो सकते हैं। दोनों नेता अपने-अपने कद के अनुसार सम्मान और हिस्सेदारी चाहते हैं, इसलिए जल्दबाजी नहीं हो रही।
इस संभावित गठबंधन पर बीजेपी की नजर भी है। हाल ही में बीजेपी के एक आंतरिक सर्वेक्षण में कहा गया कि इस गठबंधन से उसकी चुनावी संभावनाओं पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। बीजेपी नेताओं का दावा है कि तीन बड़े कारण—पारंपरिक वोट बैंक, पीएम मोदी और अमित शाह का नेतृत्व, और पिछली विधानसभा में अच्छा प्रदर्शन—उसे मुंबई में मजबूत बनाए रखते हैं। बीजेपी का यह भी कहना है कि शिवसेना (उद्धव गुट) का प्रभाव 2022 के विभाजन के बाद घट गया है, और राज ठाकरे की पकड़ भी पहले जैसी नहीं रही।
इसलिए, भले ही उद्धव और राज ठाकरे एक हो जाएं, बीजेपी का मानना है कि मराठी मतदाता बड़ी संख्या में उसके साथ हैं और मुंबई की राजनीति में उसका दबदबा कायम रहेगा। हालांकि, अगर ठाकरे भाइयों का गठबंधन साकार होता है, तो यह निश्चित ही मराठी अस्मिता की राजनीति को नया आयाम देगा और बीएमसी चुनाव सहित महाराष्ट्र की राजनीति में नई हलचल पैदा करेगा।