बेंगलुरु भगदड़ मामला: सिर्फ पुलिस नहीं, सियासत भी जिम्मेदार?
4 जून को बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) की आईपीएल खिताबी जीत के बाद आयोजित विजय जुलूस अचानक मौत का मंजर बन गया। भारी भीड़, अव्यवस्था और सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम न होने के कारण दो बार भगदड़ मची। पहली भगदड़ शाम 3:30 बजे हुई जिसमें 3 लोगों की मौत हुई, और दूसरी बार 4:50 बजे भगदड़ मचने से 8 और लोगों की जान चली गई। कुल मिलाकर 11 लोगों की मौत और 50 से अधिक लोग घायल हुए।
इस भीषण हादसे के बाद बेंगलुरु पुलिस कमिश्नर बी. दयानंद समेत तीन आईपीएस और दो जूनियर अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया। हालांकि, बी. दयानंद को तेजतर्रार और ईमानदार अधिकारी माना जाता रहा है, और पुलिस विभाग के भीतर इस कार्रवाई को लेकर भारी असंतोष है। कई वरिष्ठ अधिकारियों ने बिना जांच के इतनी बड़ी सजा को “मनोबल तोड़ने वाला” कदम बताया है।
हादसे की ज़िम्मेदारी को लेकर उंगलियां सिर्फ पुलिस पर नहीं, बल्कि राज्य सरकार पर भी उठ रही हैं। RCB और कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन (KSCA) द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के आयोजन की देखरेख मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने की थी। हालांकि, कोई आधिकारिक लिखित अनुमति नहीं दी गई थी, सिर्फ मौखिक सहमति थी। राज्य की मुख्य सचिव और इंटेलिजेंस प्रमुख ने सुरक्षा चिंताओं को लेकर चेतावनी दी थी, लेकिन इसे नजरअंदाज किया गया।
कार्यक्रम के दिन पुलिस बल भी नाकाफी था — केवल 1500 पुलिसकर्मी मैदान में मौजूद थे, जबकि दो लाख से अधिक की भीड़ उमड़ पड़ी थी। RCB द्वारा सोशल मीडिया पर जुलूस की घोषणा के बाद हालात और बिगड़ गए। पुलिस ने सफाई दी कि टीम की जीत के बाद वे रातभर ड्यूटी पर थे, जिससे उन्हें तैयारियों का समय नहीं मिल सका।
अब इस हादसे की जांच CID को सौंपी गई है, साथ ही मजिस्ट्रेट जांच और एक रिटायर्ड हाई कोर्ट जज की निगरानी में अलग से जांच भी चल रही है। सवाल उठ रहे हैं कि दो-दो जांचों की जरूरत क्यों पड़ी और क्या इससे जिम्मेदारी तय करने में और देरी नहीं होगी?
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि सरकार ने सारा दोष पुलिस पर डालकर खुद को बचा लिया है। बीजेपी ने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के इस्तीफे की मांग की है, और इसे “प्रशासनिक विफलता का दुखद उदाहरण” बताया है।
अंततः सवाल यही है — क्या यह सिर्फ पुलिस की नाकामी थी या राजनीतिक दबाव, अव्यवस्था और अफसरशाही की चुप्पी ने इस त्रासदी को जन्म दिया? जवाबदेही सिर्फ नीचे के अधिकारियों तक सीमित रखना न्यायसंगत नहीं लगता।