77 सालों में दोस्ती से दुश्मनी तक: कैसे इज़रायल और ईरान की दोस्ती अब खूनी जंग में बदल गई
कभी सहयोगी रहे इज़रायल और ईरान अब एक ऐसे मोड़ पर पहुंच चुके हैं, जहां उनका संघर्ष एक पूर्ण युद्ध का रूप ले चुका है। 13 जून की सुबह इज़रायली सेना ने ईरान की राजधानी तेहरान समेत कई सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया, जिसमें ईरान के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों और IRGC के वरिष्ठ अधिकारियों की मौत हो गई। जवाब में ईरान ने भी इज़रायल के सैन्य प्रतिष्ठानों पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिनमें से कुछ ‘आयरन डोम’ को पार कर तेल अवीव में इज़रायली रक्षा मुख्यालय के पास तक पहुंच गईं। इस युद्ध ने पश्चिम एशिया में पहले से ही बढ़े तनाव को और भी भड़का दिया है।
दोस्ती का दौर
1948 में जब इज़रायल अस्तित्व में आया, तो ज्यादातर मुस्लिम देशों ने उसे मान्यता देने से इनकार कर दिया। लेकिन ईरान और तुर्की इस अपवाद में शामिल थे जिन्होंने इज़रायल को संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। उस वक्त ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी अमेरिका के करीबी सहयोगी थे, और यही पश्चिमी गठजोड़ इज़रायल और ईरान को करीब लाया।
1950-70 के दशक में इज़रायल और ईरान के बीच गहरे आर्थिक और सैन्य संबंध विकसित हुए। दोनों देशों के खुफिया एजेंसियों—मोसाद और SAVAK—ने आपस में सूचनाएं साझा कीं, हथियार बेचे गए और इज़रायल ने ईरान को तेल के बदले में बुनियादी ढांचा सहायता दी। उस दौर में दोनों देशों के बीच सहयोग एक रणनीतिक साझेदारी जैसा था।
ब्रेकअप की शुरुआत
लेकिन 1979 की ईरानी इस्लामी क्रांति ने सब कुछ बदल दिया। अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में शाह को हटाकर इस्लामी गणराज्य स्थापित हुआ। इसके बाद इज़रायल को ‘इस्लाम का दुश्मन’ और ‘छोटा शैतान’ घोषित कर दिया गया। इज़रायली पासपोर्ट को मान्यता नहीं दी गई और ईरानियों को “कब्जे वाले फिलिस्तीन” जाने से रोक दिया गया।
प्रॉक्सी युद्ध और टकराव
1980 और 90 के दशक में ईरान ने हिजबुल्लाह, हमास और हूती जैसे सशस्त्र गुटों को प्रशिक्षण और हथियार देना शुरू किया। ये गुट इज़रायल पर बार-बार हमले करने लगे। ईरान ने फिलिस्तीन की आज़ादी का समर्थन करते हुए इज़रायल के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। 2000 में अयातुल्ला खामेनेई ने इज़रायल को ‘कैंसर का ट्यूमर’ कहा जिसे “हटाना चाहिए”।
मौजूदा संघर्ष की शुरुआत
2023 में हमास पर इज़रायली हमलों और ईरान के मिसाइल परीक्षणों के बाद हालात और बिगड़ गए। 13 जून 2025 को, जब ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु डील की बातचीत जारी थी, इज़रायल ने अचानक हमला किया। ईरानी सैन्य ठिकानों और परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाया गया। जवाब में ईरान ने भी इज़रायल के अहम ठिकानों पर हमले किए।
अब हालात ये हैं कि युद्ध पांचवें दिन में पहुंच चुका है और इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने साफ कर दिया है कि युद्ध तब तक नहीं रुकेगा जब तक ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई को खत्म नहीं किया जाता।
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