अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने राज्य के धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1978 को बहाल करने की बात कहकर एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और कानूनी मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है।
धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1978:
यह कानून जबरन या लालच देकर धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए बनाया गया था। इसका उद्देश्य अरुणाचल प्रदेश की स्वदेशी संस्कृति और पारंपरिक आस्थाओं को सुरक्षित रखना था। हालाँकि, इसे पारित होने के 47 साल बाद भी प्रभावी रूप से लागू नहीं किया गया।
Hearty thanks to Hon’ble Minister for Tribal Affairs, Shri Jual Oram Ji, for gracing the silver jubilee celebration of Indigenous Faith and Cultural Society of Arunachal Pradesh (IFSCAP) and supporting our efforts to uphold the spirit of our indigenous identity.@PMOIndia… pic.twitter.com/DVNNUIodAT
— Pema Khandu པདྨ་མཁའ་འགྲོ་། (@PemaKhanduBJP) December 27, 2024
मुख्य बिंदु:
- पेमा खांडू का बयान:
- मुख्यमंत्री ने कहा कि इस कानून को लागू करने से अरुणाचल प्रदेश की संस्कृति और परंपराओं की रक्षा में मदद मिलेगी।
- उन्होंने राज्य के पहले मुख्यमंत्री पी.के. थुंगन को इस अधिनियम के निर्माण के लिए धन्यवाद दिया।
- इतिहास और कानूनी पहलू:
- यह अधिनियम 1978 में पारित हुआ, लेकिन इसे लागू करने के नियम और प्रक्रियाएँ अब तक अधूरी रहीं।
- 2018 में पेमा खांडू ने इस कानून को निरस्त करने पर विचार करने की बात कही थी, इसे भाईचारा कमजोर करने वाला बताया था।
- 2024 में गुवाहाटी हाईकोर्ट की ईटानगर पीठ ने सरकार को आदेश दिया कि वह 6 महीने के अंदर नियमों को अंतिम रूप दे।
- मिशनरियों की भूमिका और विवाद:
- 1970 और 1980 के दशक में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों के कारण राज्य में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुए थे।
- अधिनियम को लंबे समय तक धार्मिक स्वतंत्रता बनाम धर्मांतरण रोकथाम के मुद्दे में उलझा रखा गया।
- संस्कृति और स्वदेशी आस्थाएँ:
- अरुणाचल प्रदेश में स्वदेशी आस्था और संस्कृति के संरक्षण को लेकर IFCSAP (स्वदेशी आस्था और सांस्कृतिक समाज) जैसे संगठनों ने लगातार इस कानून को लागू करने की माँग की है।
- राज्य की स्वदेशी जनजातियाँ अपने पारंपरिक धार्मिक विश्वास और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने के लिए इस कानून को महत्वपूर्ण मानती हैं।
चुनौतियाँ और संभावित प्रभाव:
- धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सांस्कृतिक संरक्षण:
- कानून को लागू करने से धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 25) और सांस्कृतिक संरक्षण (अनुच्छेद 29) के बीच संतुलन बनाना चुनौती होगी।
- इसके लागू होने पर धर्मांतरण की गतिविधियों पर निगरानी बढ़ सकती है, लेकिन इससे धार्मिक संगठनों के साथ विवाद भी हो सकता है।
- सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव:
- यह निर्णय राज्य में ईसाई और स्वदेशी समुदायों के बीच सामाजिक तनाव बढ़ा सकता है।
- इसे लेकर राजनीतिक दलों और मानवाधिकार संगठनों की प्रतिक्रियाएँ आ सकती हैं।
- कानूनी प्रक्रियाएँ:
- सरकार को हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए इसे लागू करने के लिए नियमों को अंतिम रूप देना होगा।
- इसके कार्यान्वयन के दौरान पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना आवश्यक होगा।
- मिशनरियों की प्रतिक्रिया:
- मिशनरी संस्थाएँ इस कानून को धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन मान सकती हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह मुद्दा उठ सकता है।
पेमा खांडू का दृष्टिकोण:
मुख्यमंत्री का रुख 2018 की तुलना में काफी बदल गया है। 2018 में उन्होंने इस अधिनियम को सांप्रदायिकता बढ़ाने वाला बताया था, लेकिन अब इसे सांस्कृतिक संरक्षण का साधन मानते हुए लागू करने का समर्थन कर रहे हैं। यह बदलाव हाईकोर्ट के निर्देश और राज्य में स्वदेशी संगठनों के दबाव का नतीजा हो सकता है।
भविष्य की दिशा:
- सरकार को 2024 के गुवाहाटी हाईकोर्ट के आदेश के तहत जल्द ही नियमों को अंतिम रूप देना होगा।
- इसे लागू करने से पहले सभी पक्षों के साथ चर्चा और सहमति बनाना आवश्यक होगा।
- सांस्कृतिक संरक्षण और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने के लिए यह कानून एक परीक्षण के रूप में देखा जाएगा।