सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (2 जनवरी, 2024) को कुछ जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की, जो बिहार में हुई जाति जनगणना के खिलाफ दायर किए गए थे। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा कि आखिर वो आँकड़ों को सार्वजनिक किए जाने से किस हद तक रोक सकती है? सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कास्ट सेंसस का डेटा पब्लिक किया जाए, ताकि लोगों को उन्हें चुनौती देने का मौका मिल सके। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने ‘इस मामले पर ‘यूथ फॉर इक्वलिटी’ और ‘एक सोच, एक प्रयास’ जैसे NGO की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये कहा।
हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दोनों पक्षों को विस्तार से सुने बिना अब तक कोई आदेश नहीं दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए कहा कि बिहार सरकार ने जाति जनगणना के आँकड़ों पर काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि मुद्दा अर्जेन्ट है क्योंकि रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण बढ़ा दिया गया है। पटना उच्च न्यायालय में भी इसे चुनौती दी गई है। उन्होंने कहा कि जहाँ चीजें तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं, वहीं सुप्रीम कोर्ट में अगस्त 2023 से ही ये मामला लंबित है।
हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित सुनवाई की माँग फ़िलहाल नहीं मानी है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर चिंता जताई कि जाति जनगणना के आँकड़ों को किस हद तक सार्वजनिक किया जा सकता है जिससे लोगों की निजता का उल्लंघन भी न हो। वहीं बिहार सरकार ने कहा कि सर्वे सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है। वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संविधान के हिसाब से ये जनगणना नहीं है। वहीं अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि ये जातीय जनगणना अवैध है, राज्य सरकार इसे नहीं करा सकती।
अब इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 29 जनवरी, 2024 को होगी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट अब तक सर्वे और इसके आधार पर उठाए जाने वाले कदम को रोकने से इनकार कर चुका है। याचिकाकर्ताओं ने जाति जनगणना को लोगों की प्राइवेसी का उल्लंघन करार दिया था। केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखा है कि वो न तो सर्वे के समर्थन में है और न ही विरोध में। केंद्र सरकार ने SC, ST, SEBC और OBC समाज के उत्थान के लिए काम करने के संकल्प को भी दोहराया था।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा है कि बिहार सरकार ने जातीय जनगणना के आँकड़ों के आधार पर जो निर्णय लिए हैं उनके खिलाफ वो ताज़ा याचिका दायर करें। अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के जातीय जनगणना के आधार पर फैसले लेने से रोकने से इनकार कर दिया था और कहा था कि किसी भी सरकार को नीतिगत निर्णय लेने से नहीं रोका जा सकता। पटना हाईकोर्ट जातीय जनगणना को वैध बता चुका है। अगस्त में ही उसने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।