अभी पितृपक्ष का समय चल रहा है. पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पन और पिंडदान किया जाता है. मान्यता है कि पितरों को तर्पण और पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. भारत ही नहीं अब तो पश्चिमी देशों में भी पिंडदान और इससे जुड़े कर्मकांड की महत्ता देखी जा रही है. यह वजह है कि बिहार की धार्मिक नगरी कहे जाने वाले गया में विदेशों से लोग अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने की कामना से पिंडदान करने आ रहे हैं.
बुधवार को जर्मनी से आए 12 लोग जिसमें 11 महिला और एक पुरुष शामिल हैं ने पूरे विधि विधान के साथ फल्गू तट के देवघाट पर पिंडदान और तर्पन किया. इस दौरान महिलाओं ने साड़ी पहनी थी जबकि पुरुष ने पूजा के दौरान धोती पहनी.
कहा जाता है कि गया में विष्णुपद मंदिर के पास बहने वाली फल्गु नदी में स्नान और तर्पण करने से पितरों को देव योनि प्राप्त होती है. यहां पिंडदान करने से सात पीढ़ियों के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
पति और पिता के लिए पिंडदान
देवघाट में फल्गु नदी के किनारे जर्मनी से आए 12 लोग जिसमें क्रिस्टिनी यूलिया, अनाकोचेटकोवा औलिया शामिल है ने अपने पूर्वजों और परिजनों के आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण किया. आचार्य पंडित लोकनाथ गौड़ ने सभी को पिंडदान कराया. आचार्य पंडित लोकनाथ गौड़ ने बताया कि यहां आए लोगों ने अपने पुत्र, पति और पिता के लिए पिंडदान कराया.
‘सनातन धर्म के लिए बढ़ रही है आस्था’
पंडित लोकनाथ ने बताया कि विदेशों में सनातन धर्म के प्रति खासकर महिलाओं में काफी आस्था देखी जा रही है. पिंडदान करने आई सभी सदस्य पहली बार भारत आई हैं. उन्होंने बताया कि भारत के सनातन धर्म पर रूस की रहने वाली नताशा शप्रोनोवा ने काफी रिसर्च किया है. वह रूस और युरोपीय देशों सनातन धर्म की महता को बता रही है. नताशा शप्रोनोवा की पहल पर रूस से भी लोग पिंडदान करने गया पहुंचे थे.
‘पिंडदान कर अच्छा महसूस कर रहे हैं’
वहीं जर्मनी से पिंडदान करने आए लोगों ने बताया कि गया के पिंडदान कर्मकांड के बारे में बहुत सुना था. इसके बाद हमलोग अपने पितरों के आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पन किया.पवित्र गया जी पिंडदान करके हमें बहुत अच्छा लग रहा है.