दुनियाभर में रह रहे भारतीयों ने अपने देश रकम भेजने में फिर से झंडे गाड़े हैं। वर्ल्ड बैंक की तरफ से सोमवार को जारी लेटेस्ट आंकड़ों के मुताबिक, साल 2023 में भारत में विदेशों से आने वाला धन 12.3 प्रतिशत बढ़कर 125 बिलियन डॉलर हो गया। यह साल 2022 में 111.22 बिलियन डॉलर था। भारत भेजा जाने वाला यह धन अब देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.4 प्रतिशत है। भाषा की खबर के मुताबिक, विश्व बैंक की ‘माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ’ में कहा गया है कि भारत वर्ल्ड लेवल पर देश में बाहर से धन प्रवाह के मामले में सबसे ज्यादा प्राप्तकर्ता बना हुआ है।
रेमिटेंस में भारत की हिस्सदारी
खबर के मुताबिक, भारत के बाद मेक्सिको (67 बिलियन डॉलर) और चीन (50 बिलियन डॉलर) हैं। मौजूदा समय में दक्षिण एशिया में भेजे जाने वाले कुल बाहरी रकम में भारत की हिस्सेदारी 66 प्रतिशत है, जो साल 2022 में 63 प्रतिशत से अधिक थी। आंकड़ों के मुताबिक, बाहर से धन स्वेदश भेजने की ग्रोथ रेट लैटिन अमेरिका और कैरेबियन (8 प्रतिशत) में सबसे ज्यादा है, इसके बाद दक्षिण एशिया (7.2 प्रतिशत) और पूर्वी एशिया और प्रशांत (3 प्रतिशत) का नंबर आता है।
इन फैक्टर से भारत में बढ़ा रेमिटेंस फ्लो
भारत में विदेशों से आने वाले धन में बढ़ोतरी के पीछे पीछे मेन फैक्टर मुद्रास्फीति में गिरावट और हाई इनकम वालें देशों में मजबूत श्रम बाजार हैं, जिसने अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर में कुशल भारतीयों से धन के फ्लो को बढ़ावा दिया। आपको बता दें, भारत में कुल रेमिटेंस फ्लो में इन तीन देशों का हिस्सा 36 प्रतिशत है। खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) से हाई फ्लो ने भी बढ़ोतरी में योगदान दिया, खासतौर से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से, जो भारत के कुल रेमिटेंस का 18 प्रतिशत हिस्सा है, जो अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा है।
लोकल करेंसी के इस्तेमाल को बढ़ावा
भारत में रेमिटेंस फ्लो को सीमा पार लेनदेन के लिए लोकल करेंसी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने और पेमेंट और मैसेजिंग सिस्टम को इंटरलिंक करने के लिए सहयोग के लिए एक रूपरेखा सेट अप करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात के साथ फरवरी 2023 के समझौते से विशेष रूप से लाभ हुआ। सीमा पार लेनदेन में दिरहम और रुपये का इस्तेमाल औपचारिक चैनलों के जरिये ज्यादा फ्लो को बढ़ाने में सहायक होगा। एक वजह दक्षिण एशिया में कम प्रेषण लागत है। 4.3 प्रतिशत पर, दक्षिण एशिया में 200 डॉलर भेजने की लागत 2023 की दूसरी तिमाही में वैश्विक औसत 6.2 प्रतिशत से 30 प्रतिशत कम है।