भारत की जीडीपी वृद्धि दर के बारे में जो जानकारी सामने आई है, वह घरेलू और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के प्रभाव को दर्शाती है। जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर घटकर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, और इसके पीछे मुख्य कारण भारी बारिश और कमजोर कॉर्पोरेट परफॉर्मेंस हैं। हालांकि, इक्रा जैसी घरेलू रेटिंग एजेंसी ने वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी छमाही (अक्टूबर 2024-मार्च 2025) में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने की संभावना जताई है, जिससे समूचे वित्त वर्ष के लिए 7 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान बनाए रखा है।
मुख्य बिंदु:
- जीडीपी में गिरावट के कारण:
- भारी बारिश और कमजोर कॉर्पोरेट परफॉर्मेंस के कारण जुलाई-सितंबर तिमाही में आर्थिक वृद्धि धीमी पड़ी है। ये दोनों कारक विशेष रूप से कृषि और कॉर्पोरेट क्षेत्र में प्रदर्शन को प्रभावित कर रहे हैं।
- दूसरी छमाही में तेजी की उम्मीद:
- इक्रा ने उम्मीद जताई है कि अक्टूबर 2024 से मार्च 2025 के बीच आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ सकती है, जिससे समग्र वृद्धि दर को संतुलित किया जा सकेगा।
- वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 7% वृद्धि का अनुमान:
- रेटिंग एजेंसी ने 7 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान बनाए रखा है, जो संकेत देता है कि आगामी महीनों में सुधार की संभावना है। यह सुधार शहरी मांग में कमी, महंगाई, और अन्य बाहरी दबावों के बावजूद हो सकता है।
- वृद्धि में मंदी की चिंताएं:
- शहरी मांग में कमी और अन्य आर्थिक दबावों के कारण वृद्धि में मंदी की चिंता बढ़ी है, लेकिन दूसरी छमाही में आर्थिक गतिविधियों के तेज होने की संभावना इसे संतुलित कर सकती है।
इस प्रकार, भारत की आर्थिक वृद्धि 2024-25 में नकारात्मक परिस्थितियों के बावजूद, 7 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है, जो आर्थिक सुधार और वृद्धि की गति को पुनः सुनिश्चित कर सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने 2024-25 के लिए आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 7.2 प्रतिशत लगाया है, जो कि पिछले वित्त वर्ष 2023-24 के 8.2 प्रतिशत से कम है। इसके अलावा, दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के आर्थिक आंकड़ों को लेकर कुछ चिंताएं भी जताई जा रही हैं, जिसमें खनन और बिजली क्षेत्र में मंदी के संकेत मिल रहे हैं।
मुख्य बिंदु:
- आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान:
- भारतीय रिजर्व बैंक का अनुमान है कि आर्थिक वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रहेगी, जो 2023-24 के मुकाबले कम है।
- यह आंकड़ा 2024-25 के दौरान आर्थिक विकास में धीमी गति को दर्शाता है, हालांकि खरीफ की बुवाई और सरकारी खर्च से कुछ सकारात्मक रुझान बने रह सकते हैं।
- पहली तिमाही की वृद्धि:
- पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में जीडीपी वृद्धि 6.7 प्रतिशत रही थी, जबकि दूसरी तिमाही में गिरावट की संभावना जताई जा रही है।
- दूसरी तिमाही में मंदी के कारण:
- इक्रा ने बताया कि दूसरी तिमाही में मंदी का कारण भारी बारिश और कमजोर कॉर्पोरेट प्रदर्शन जैसे कारक हो सकते हैं।
- खासकर खनन और बिजली क्षेत्र में मंदी के संकेत मिल रहे हैं, जो औद्योगिक क्षेत्र को प्रभावित कर सकते हैं।
- सरकारी व्यय और खरीफ बुवाई का सकारात्मक प्रभाव:
- हालांकि, सरकारी खर्च और खरीफ की बुवाई से सकारात्मक रुझान बने हुए हैं, लेकिन यह संभवत: औद्योगिक क्षेत्र के धीमे प्रदर्शन को पूरी तरह से संतुलित नहीं कर पाएगा।
इस प्रकार, भारत के खनन और पावर सेक्टर में मंदी की संभावना है, जो आर्थिक वृद्धि में रुकावट डाल सकती है, लेकिन सरकारी खर्च और कृषि क्षेत्र में सुधार से समग्र वृद्धि में सकारात्मक रुझान बने रह सकते हैं।
अच्छे मानसून का फायदा आगे मिलेगा
रेटिंग एजेंसी की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, ‘‘वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में आम चुनाव के बाद पूंजीगत व्यय में वृद्धि के साथ-साथ प्रमुख खरीफ फसलों की बुवाई में भी अच्छी वृद्धि देखी गई। भारी वर्षा के कारण कई क्षेत्रों को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, जिससे खनन गतिविधि, बिजली की मांग और खुदरा ग्राहकों की संख्या प्रभावित हुई और व्यापारिक निर्यात में भी कमी आई।’’ उन्होंने कहा कि अच्छे मानसून का फायदा आगे मिलेगा तथा खरीफ उत्पादन में वृद्धि तथा जलाशयों के पुनः भरने से ग्रामीण मांग में निरंतर सुधार होने की संभावना है। मुख्य अर्थशास्त्री ने कहा, ‘‘हम निजी उपभोग पर व्यक्तिगत ऋण वृद्धि में मंदी के प्रभाव के साथ-साथ कमोडिटी की कीमतों और बाह्य मांग पर भू-राजनीतिक घटनाक्रमों के प्रभाव पर भी नजर रख रहे हैं।’’