अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड (APSEZ) के एक रणनीतिक वैश्विक अधिग्रहण पर केंद्रित है, जो भारत की समुद्री लॉजिस्टिक्स क्षमता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और मजबूत करता है।
एबॉट पॉइंट पोर्ट अधिग्रहण का सारांश
बिंदु | विवरण |
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अधिग्रहणकर्ता | अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड (APSEZ) |
विक्रेता | Carmichael Rail & Port Singapore Holdings (सिंगापुर स्थित इकाई) |
लक्षित इकाई | Abbott Point Port Holdings (APLH), ऑस्ट्रेलिया |
राशि | ₹17,244 करोड़ (लगभग 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर) |
प्रणाली | FDI-ODI शेयर स्वैप (नकद नहीं, शेयर के माध्यम से) |
समझौता तारीख | 17 अप्रैल 2025 |
स्थिति | नियामक और शेयरधारकों की मंजूरी बाकी |
रणनीतिक महत्व
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ग्लोबल लॉजिस्टिक्स नेटवर्क में विस्तार:
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अडानी पोर्ट्स अब एक ऑस्ट्रेलियाई गहरे पानी के पोर्ट का पूर्ण स्वामी बन गया है।
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यह बंदरगाह विशेष रूप से कोयले के निर्यात के लिए महत्वपूर्ण है, जिससे अडानी की कोयला खनन परियोजना (Carmichael Mines) को प्रत्यक्ष लॉजिस्टिक्स सपोर्ट मिलेगा।
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भूगोलिक लाभ:
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Abbott Point Port ऑस्ट्रेलिया के नॉर्थ क्वींसलैंड में स्थित है।
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यह तट से सिर्फ 2.75 किमी दूर गहरे पानी वाला एक दुर्लभ पोर्ट है, जिससे बड़े जहाजों का लोडिंग-अनलोडिंग आसान होता है।
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इन्फ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट:
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इस पोर्ट तक विशेष रूप से रेलवे लाइन बनाई गई है, जो खदानों से सीधे कनेक्ट होती है।
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‘ईस्ट-वेस्ट बैलेंसिंग’ रणनीति:
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भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटीय संचालन में संतुलन लाने के अडानी समूह के लक्ष्य को यह सौदा और मजबूती देता है।
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कानूनी और तकनीकी सलाह
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अधिग्रहण के लिए सिरिल अमरचंद मंगलदास ने कानूनी सलाह दी।
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टीम का नेतृत्व रुतविज पंड्या, परिधि अडानी, सुभलक्ष्मी नस्कर, मोल्ला हसन ने किया।
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यह वही लॉ फर्म है जिसने अडानी पोर्ट्स को पहले गोपालपुर पोर्ट और एस्ट्रो ऑफशोर के अधिग्रहण में भी सलाह दी थी।
व्यापारिक प्रभाव और संभावनाएँ
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लंबी अवधि में लाभ:
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यह सौदा अडानी की माइनिंग-टू-मैरिटाइम रणनीति को समर्थन देगा।
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लॉजिस्टिक लागत में कमी, संचालन पर नियंत्रण, और वैश्विक कोयला निर्यात में मजबूती मिलेगी।
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विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) और विदेशी डायरेक्ट आउटगोइंग इन्वेस्टमेंट (ODI) के संयोजन से टैक्स और विनियामक लाभ भी संभावित हैं।
यह अधिग्रहण अडानी पोर्ट्स के लिए सिर्फ एक लॉजिस्टिक्स निवेश नहीं, बल्कि ऊर्जा, खनन और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को एकीकृत करने की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। यह भारत की कंपनियों द्वारा वैश्विक पोर्ट अधिग्रहण की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।