भारतीय शेयर बाजार में आज भारी गिरावट देखी गई, जिसका मुख्य कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कनाडा, मैक्सिको और चीन पर लगाए गए नए टैरिफ हैं। इन टैरिफों के परिणामस्वरूप वैश्विक बाजारों में चिंता बढ़ी है, जिससे निवेशकों में घबराहट फैल गई है।
बीएसई सेंसेक्स 678.01 अंक गिरकर 76,827.95 पर आ गया, जबकि एनएसई निफ्टी 207.90 अंक की गिरावट के साथ 23,274.25 पर बंद हुआ। प्रमुख कंपनियों जैसे टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, जोमैटो और इंडसइंड बैंक के शेयरों में महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई।
एशियाई बाजारों में भी नकारात्मक प्रभाव देखा गया। जापान के निक्केई 225 में 2.3% की गिरावट आई, जबकि हांगकांग के हैंग सेंग इंडेक्स में 1.9% की कमी दर्ज की गई। चीन, कनाडा और मैक्सिको ने अमेरिकी टैरिफ के जवाब में प्रतिशोधी कदम उठाने की घोषणा की है, जिससे वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका बढ़ गई है।
इसके अतिरिक्त, भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87 के स्तर से नीचे गिर गया, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है। विश्लेषकों का मानना है कि ये टैरिफ वैश्विक आर्थिक वृद्धि को धीमा कर सकते हैं और मुद्रास्फीति में वृद्धि कर सकते हैं।
Nifty, Sensex bleed amid Trump tariff on China, Canada, and Mexico
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— ANI Digital (@ani_digital) February 3, 2025
बाजार खुलते ही निवेशकों के 5 लाख करोड़ डूबे
बाजार में बड़ी गिरावट से सिर्फ 5 मिनट में ही निवेशकों के 5 लाख करोड़ रुपये डूब गए हैं। यह आज की बात नहीं है। पिछले काफी समय से निवेशकों को लगातार निवेशको को नुकसान हो रहा है। बाजार में बड़ी गिरावट से म्यूचुअल फंड निवेशकों निराश हो गए हैं। इसके चलते सिप खाते बंद होने का आंकड़ा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।
एशियाई शेयर बाजारों में भारी गिरावट
ट्रेड वॉर शुरू होने से अमेरिका सहित दुनियाभर के बाजारों में बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है। जापान के निक्केई 225 इंडेक्स सहित प्रमुख एशियाई सूचकांक 2.27 फीसदी से अधिक गिर गए, जबकि हांगकांग के हैंग सेंग इंडेक्स में 2.07 फीसदी की गिरावट आई। ताइवान के सूचकांक में सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई, जो 3.74 फीसदी से अधिक गिर गया है। एशियाई बाज़ार अक्सर अमेरिकी नीतियों पर कड़ी प्रतिक्रिया करते हैं, ख़ास तौर पर जब उनमें व्यापार प्रतिबंध शामिल होते हैं। चीन, ख़ास तौर पर वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में अहम भूमिका निभाता है और चीनी सामानों पर टैरिफ़ से कीमतें बढ़ सकती हैं और बाज़ार में व्यवधान पैदा हो सकता है। इस रिपोर्ट को लिखे जाने तक, ज़्यादातर एशियाई बाज़ारों में बिकवाली का दबाव बना हुआ था।