मुख्य बिंदु संक्षेप में:
- तालिबान का झुकाव भारत और ईरान की ओर:
- पाकिस्तान के साथ संबंधों में बढ़ती खटास (जैसे कि अफगान शरणार्थियों की जबरन वापसी) के कारण तालिबान अब भारत और ईरान के साथ व्यापार सहयोग बढ़ाने की ओर अग्रसर है।
- चाबहार बंदरगाह की अहमियत:
- भारत द्वारा विकसित चाबहार बंदरगाह अब अफगानिस्तान के लिए एक वैकल्पिक व्यापार मार्ग बन रहा है, जो पाकिस्तान के कराची और ग्वादर बंदरगाहों की निर्भरता को घटा सकता है।
- इससे अफगानिस्तान के लिए मध्य एशिया और भारत तक सीधा रास्ता खुलेगा, जिससे उसका वैश्विक व्यापार तेज़ हो सकता है।
- INSTC (International North-South Transport Corridor) में अफगानिस्तान की संभावित एंट्री:
- INSTC एक भारत-ईरान-रूस केंद्रित व्यापार गलियारा है, जो भारत को मध्य एशिया, रूस और यूरोप से जोड़ता है।
- अफगानिस्तान की इसमें भागीदारी उसकी भौगोलिक स्थिति को एक कनेक्टिविटी हब में बदल सकती है।
- भारत-तालिबान उच्च स्तरीय संवाद:
- विदेश मंत्री एस. जयशंकर और तालिबानी विदेश मंत्री मुत्ताकी के बीच सीधी बातचीत 1999 के बाद पहली बार हुई।
- यह भारत-तालिबान रिश्तों में आइस ब्रेकिंग की शुरुआत मानी जा सकती है, हालांकि यह अभी अनौपचारिक या “प्रैक्टिकल एंगेजमेंट” तक सीमित है।
- ईरान की रणनीति:
- ईरान अफगानिस्तान को INSTC में जोड़कर अपनी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और भू-राजनीतिक भूमिका को मजबूत करना चाहता है।
भूराजनीतिक मायने:
पक्ष | उद्देश्य/हित | रणनीतिक लाभ |
---|---|---|
तालिबान (अफगानिस्तान) | पाकिस्तान पर निर्भरता घटाना, व्यापार के नए रास्ते खोजना | भारत-ईरान से कनेक्टिविटी, कूटनीतिक विविधता |
भारत | पाकिस्तान को बायपास कर मध्य एशिया तक पहुंच | चाबहार के ज़रिए अफगान व्यापार, ईरान से साझेदारी |
ईरान | INSTC को विस्तार देना, क्षेत्रीय दबदबा बढ़ाना | अफगानिस्तान को जोड़ने से असर बढ़ेगा |
भविष्य की दिशा:
- चाबहार बंदरगाह भारत के लिए न केवल व्यापारिक, बल्कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी अहम हो गया है।
- अफगानिस्तान अगर INSTC से जुड़ता है, तो पाकिस्तान की भौगोलिक मोनोपॉली खत्म हो सकती है।
- भारत को अब तालिबान शासन के साथ “सावधानी से लेकिन व्यावहारिक संवाद” बनाए रखना होगा, ताकि अफगान जनता तक मानवीय सहायता पहुंचे और रणनीतिक हित सुरक्षित रहें।
निष्कर्ष:
तालिबान द्वारा भारत और ईरान की ओर रुख करना इस बात का संकेत है कि दक्षिण एशिया में कूटनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। चाबहार और INSTC जैसे प्रोजेक्ट अब केवल बुनियादी ढांचा नहीं, बल्कि भविष्य की रणनीतिक गाथाएं तय कर रहे हैं। यह भारत के लिए एक सामरिक अवसर है — तालिबान शासन से सीधे मान्यता न देकर भी ‘ट्रेड और ट्रांजिट डिप्लोमेसी’ के ज़रिए असर बढ़ाने का।