आपने जो रिपोर्ट साझा की है, वह वास्तव में भारत के लिए आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से ऐतिहासिक उपलब्धि है। अमेरिका जैसे बड़े और प्रतिस्पर्धी बाज़ार में iPhone निर्यात में भारत का चीन को पीछे छोड़ना सिर्फ व्यापारिक आंकड़ा नहीं, बल्कि मेक इन इंडिया की सशक्त सफलता और वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की मज़बूत होती स्थिति का प्रमाण है।
कैसे हुआ भारत से iPhone निर्यात का यह बूम?
1. ट्रंप के टैरिफ से भारत को फायदा
- ट्रंप प्रशासन ने चीन से आने वाले iPhone पर 30% टैरिफ लगाया।
- जबकि भारत से आने वाले iPhone पर सिर्फ 10% टैक्स है।
- इससे Apple को चीन के मुकाबले भारत से प्रोडक्ट मंगवाना किफायती लगा।
2. Apple की “चीन+1” रणनीति
- कोविड और चीन में पाबंदियों के चलते Apple ने अपनी निर्भरता कम करनी शुरू की।
- भारत को विकल्प के रूप में चुना, निवेश बढ़ाया और उत्पादन का विस्तार किया।
3. Foxconn, Tata जैसी कंपनियों की भूमिका
- Foxconn, Wistron, और Tata जैसी कंपनियां भारत में iPhone असेंबल कर रही हैं।
- इन कंपनियों ने प्रशिक्षित श्रमिकों, स्थानीय सप्लाई चेन, और सरकारी प्रोत्साहनों का लाभ उठाया।
4. मेक इन इंडिया + PLI स्कीम
- भारत सरकार की Production Linked Incentive (PLI) स्कीम ने Apple और उसके सप्लायर्स को आकर्षित किया।
- इसके तहत कंपनियों को प्रोडक्शन बढ़ाने पर आर्थिक प्रोत्साहन मिला।
अप्रैल 2025 के आंकड़े: भारत बनाम चीन
पैमाना | भारत | चीन |
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अमेरिका को iPhone निर्यात | 30 लाख यूनिट | 9 लाख यूनिट |
चीन का निर्यात गिरा | 76% की गिरावट | — |
भारत बना शीर्ष निर्यातक |
भारत को क्या लाभ हुआ?
- रोज़गार में वृद्धि: iPhone निर्माण से अब तक लाखों नौकरियां पैदा हुई हैं।
- आर्थिक बूस्ट: निर्यात बढ़ने से विदेशी मुद्रा आ रही है और भारत का ट्रेड बैलेंस सुधर रहा है।
- वैश्विक पहचान: “Made in India” टैग अब दुनिया भर में Apple जैसे प्रीमियम ब्रांड से जुड़ गया है।
भविष्य में क्या उम्मीद?
- Apple भारत में iPhone के अलावा अन्य डिवाइसेज़ जैसे iPad और AirPods का भी उत्पादन शुरू कर सकता है।
- Tata Group द्वारा भारत में पहला Apple exclusive iPhone प्लांट भी शुरू होने वाला है।
- भारत धीरे-धीरे वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है, जिससे GDP, निर्यात और रोज़गार—तीनों क्षेत्रों में मजबूती आएगी।
निष्कर्ष:
भारत ने चीन से आगे निकलकर जो किया है, वह केवल व्यापार नहीं, एक भविष्य की दिशा तय करने वाला कदम है। यह दिखाता है कि जब सरकार, निजी क्षेत्र और वैश्विक कंपनियां साथ मिलें, तो भारत “विकास” से “विकसन” (ट्रांसफॉर्मेशन) की ओर बढ़ सकता है।