स्थापना:
IMF की स्थापना 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में हुई थी। शुरुआत में इसके 44 सदस्य देश थे, आज यह बढ़कर 191 हो चुके हैं।
IMF के पास पैसा कहां से आता है?
IMF के पास तीन प्रमुख स्रोत होते हैं:
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Member Quotas (सदस्य कोटा):
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यह IMF की मुख्य पूंजी होती है।
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हर सदस्य देश सदस्यता शुल्क (quota subscription) देता है, जो उसके आर्थिक आकार (GDP), विदेशी मुद्रा भंडार, व्यापार आदि पर निर्भर करता है।
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इसी कोटे से देश की voting power भी तय होती है।
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उदाहरण: अमेरिका का सबसे बड़ा कोटा है, इसलिए उसकी सबसे अधिक वोटिंग पावर भी है। भारत का हिस्सा लगभग 2.75% है।
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ब्याज आय (Lending Income):
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IMF जब किसी देश को लोन देता है, तो उससे ब्याज लेता है।
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यह ब्याज IMF की कमाई होती है और इससे ऑपरेशंस चलते हैं।
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NAB और BBA (कर्ज के स्रोत):
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New Arrangements to Borrow (NAB): जब IMF के पास पूंजी कम हो, तो वह अमीर देशों से अस्थायी तौर पर पैसा मांगता है।
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Bilateral Borrowing Agreements (BBA): विशेष समझौतों के तहत IMF देशों से द्विपक्षीय कर्ज लेता है।
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ये दोनों बैकअप स्रोत हैं।
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IMF किस तरह का कर्ज देता है?
IMF तीन प्रमुख प्रकार के कर्ज देता है:
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Rapid Financing Instrument (RFI):
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आपातकालीन स्थितियों के लिए बिना शर्तों के त्वरित लोन।
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Extended Fund Facility (EFF):
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लंबी अवधि के लिए लोन, आर्थिक सुधार की शर्तों के साथ।
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Stand-By Arrangement (SBA):
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अल्पकालिक संतुलन और बजटीय जरूरतों के लिए।
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कौन हैं IMF के सबसे बड़े कर्जदार?
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अर्जेंटीना (लगभग $46 अरब से अधिक)
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यूक्रेन
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मिस्र
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पाकिस्तान (लगातार बेलआउट लेने वाला देश)
पाकिस्तान को लोन क्यों? सवालों के घेरे में IMF
IMF का कहना है कि वह राजनीतिक नहीं, आर्थिक संस्था है और वह सदस्य देशों की आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए लोन देता है। लेकिन आलोचना इस बात की हो रही है कि:
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पाकिस्तान IMF से लोन लेकर सैन्य खर्च बढ़ाता है।
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आतंकी संगठनों को परोक्ष रूप से संरक्षण देता है।
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इसके बावजूद IMF उसे बार-बार बेलआउट देता है।
आलोचना क्यों हो रही है?
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भारत की आतंकवाद विरोधी कार्रवाई (जैसे ऑपरेशन सिंदूर) के दौरान, IMF का पाकिस्तान को लोन देना राजनयिक रूप से भारत विरोधी क़दम की तरह देखा जा रहा है।
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IMF की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठते हैं।
भारत और IMF
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भारत ने 1993 के बाद से IMF से कोई लोन नहीं लिया है।
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भारत आज IMF का दाता (creditor) देश है, न कि उधार लेने वाला।
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IMF में भारत की भूमिका मजबूत होती जा रही है, लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देशों की वर्चस्व के कारण निर्णय अक्सर पश्चिम के हितों के अनुसार होते हैं।
निष्कर्ष
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IMF का पैसा ज्यादातर सदस्य देशों की सदस्यता शुल्क और ब्याज आय से आता है।
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यह पैसा गरीब देशों की मदद के लिए है, लेकिन राजनीतिक प्रभाव के कारण इसका दुरुपयोग भी होता है।
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पाकिस्तान जैसे देशों को बार-बार लोन देना, जबकि वह आतंकवाद को संरक्षण देता है, IMF की नैतिक और नीतिगत विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
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भारत जैसे देश इन मंचों पर सुधार की मांग लगातार करते रहे हैं — ताकि वोटिंग पावर, पारदर्शिता और जवाबदेही में संतुलन हो।