छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में हुए IED ब्लास्ट और अबूझमाड़ मुठभेड़ की घटनाएं माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा की गंभीर चुनौतियों को उजागर करती हैं।
IED ब्लास्ट की घटना
- स्थिति: यह घटना नारायणपुर जिले के तोके गांव में हुई, जहां नक्सलियों ने सड़क निर्माण कार्य के सुरक्षा में तैनात जवानों को निशाना बनाने के लिए IED लगाया था।
- प्रभाव: दो जवान इस ब्लास्ट में घायल हुए, जिन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
- नक्सल रणनीति: नक्सली अक्सर विकास कार्यों, जैसे सड़क निर्माण, को बाधित करने के लिए IED का इस्तेमाल करते हैं। यह घटना उनकी ऐसी ही गतिविधियों का हिस्सा है।
अबूझमाड़ मुठभेड़ पर विवाद
ग्रामीणों और कार्यकर्ताओं के दावे:
- मुठभेड़ को फर्जी बताया जा रहा है।
- दावा किया गया कि मारे गए सात में से पांच स्थानीय किसान थे।
- नाबालिगों के घायल होने और एक लड़की समेत चार बच्चों के पुलिस फायरिंग में चोटिल होने का आरोप लगाया गया।
पुलिस का पक्ष:
- मुठभेड़ में दो महिलाओं सहित सात नक्सली मारे गए।
- पुलिस का दावा है कि मारे गए सभी नक्सलियों पर इनाम घोषित था।
- रामचंद्र उर्फ कार्तिक (25 लाख रुपये इनामी)
- रमीला मदकम उर्फ कोसी (5 लाख रुपये इनामी)
- नक्सलियों पर मानव ढाल के रूप में नाबालिगों का उपयोग करने का आरोप।
आदिवासी कार्यकर्ता और पुलिस के बीच असहमति
- आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी ने मुठभेड़ की जांच और घायल बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराने की मांग की है।
- पुलिस का कहना है कि मुठभेड़ वास्तविक थी और नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई के दौरान निर्दोष लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाया गया।
स्थिति का व्यापक विश्लेषण:
- विकास कार्यों पर नक्सली हमले:
- सड़क निर्माण जैसी बुनियादी सुविधाओं पर हमले यह संकेत देते हैं कि नक्सली विकास को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानते हैं।
- मुठभेड़ पर विवाद:
- यदि मुठभेड़ के दावों में विसंगतियां हैं, तो यह पुलिस की जवाबदेही और मानवाधिकारों की रक्षा पर सवाल खड़ा करता है।
- स्थानीय जनजातियों का भरोसा जीतना:
- नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति और विकास सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय जनजातियों का भरोसा और सुरक्षा बलों की पारदर्शिता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अगले कदम:
- मुठभेड़ की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए ताकि सच्चाई सामने आ सके।
- नक्सली रणनीति को नाकाम करने के लिए स्थानीय समुदायों को सुरक्षा और विकास में शामिल करना आवश्यक है।
- IED जैसे हमलों को रोकने के लिए सुरक्षा उपायों को मजबूत करना होगा।
- आदिवासी कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच संवाद को बढ़ावा देकर, आपसी विश्वास स्थापित करना होगा।
स्थानीय लोगों ने क्या कुछ बताया
स्थानीय लोगों के अनुसार, 11 दिसंबर को सुबह करीब नौ बजे सुरक्षाकर्मियों ने उन पर तब गोलियां चलाईं, जब वे नारायणपुर जिले के रेखावाया पंचायत के अंतर्गत कुम्माम और लेकावाड़ा गांवों के पास पहाड़ियों पर खेतों में काम कर रहे थे. उन्होंने बताया कि उनमें से कुछ घायल हो गए, जबकि कई बच गए. उन्होंने बताया कि पुलिस ने मुठभेड़ में मारे गए लोगों को नक्सली बताकर तस्वीरें साझा कीं, जिसके बाद पता चला कि उनमें से पांच ग्रामीण थे जो अपने खेतों में काम कर रहे थे और केवल रामचंद्र और रमीला ही नक्सली थे.
सोरी ने पुलिस पर नक्सलवाद को खत्म करने के नाम पर बच्चों सहित निर्दोष आदिवासियों को निशाना बनाने का आरोप लगाया. रामली के पिता ने रायपुर में ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘पुलिस ने अंधाधुंध गोलीबारी की. मेरी बेटी खेल रही थी, तभी पुलिस की गोलीबारी में वह घायल हो गई, वहां कोई नक्सली मौजूद नहीं था.’ वहीं, नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) प्रभात कुमार ने कहा कि नक्सलियों ने अपने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की जान बचाने के लिए नाबालिगों सहित कुछ ग्रामीणों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया, जिसके कारण बच्चे घायल हो गए.