सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर चल रही सुनवाई का एक व्यापक और गूढ़ चित्र प्रस्तुत करती है। यह सुनवाई केवल एक तकनीकी कानूनी विवाद नहीं है, बल्कि इसमें धार्मिक स्वतंत्रता, ऐतिहासिक अधिकार, और राज्य बनाम धार्मिक संस्थाओं की भूमिका जैसे संवेदनशील विषय शामिल हैं।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: एक विश्लेषण
1. तीन मुद्दों तक सीमित सुनवाई की मांग
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का तर्क:
“शुरुआत में कोर्ट ने तीन मुख्य मुद्दों को सुनवाई के लिए चिह्नित किया था, हमने उन्हीं पर जवाब दिए हैं। अब नए मुद्दे नहीं जोड़े जाने चाहिए।”
- कपिल सिब्बल ने इसका विरोध किया और कहा:
“हम केवल उन्हीं बिंदुओं तक सीमित नहीं रह सकते, क्योंकि अधिनियम की पूरी वैधता सवालों के घेरे में है।”
CJI की प्रतिक्रिया:
संविधान की व्याख्या के मामलों में कोर्ट खुद तय करती है कि किन बिंदुओं की सुनवाई जरूरी है।
2. पंजीकरण अनिवार्यता का विवाद
- सिब्बल का तर्क:
“2013 के वक्फ अधिनियम में पंजीकरण का ज़िक्र तो था, परंतु पंजीकरण न होने पर कोई कानूनी परिणाम नहीं था। ‘करेगा’ शब्द से कोई अनिवार्यता सिद्ध नहीं होती जब तक दंड न हो।”
- CJI बी आर गवई की टिप्पणी:
“सिर्फ इसलिए कि किसी अधिनियम में ‘करेगा’ लिखा है, इसका मतलब यह नहीं कि वह बाध्यकारी (mandatory) है, जब तक अनुपालन न करने पर कोई दंड न हो।”
मुख्य विवाद:
2025 का संशोधन यह कहता है कि पंजीकरण न होने पर संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा, जो सिब्बल के अनुसार वक्फ की परिभाषा और अधिकार को बदल देता है।
3. ‘वक्फ बाय यूजर’ की स्थिति
- यह वे संपत्तियाँ हैं जिन्हें लंबे समय से धार्मिक उपयोग में लाया जा रहा है, भले ही उनका कानूनी पंजीकरण न हुआ हो।
- सिब्बल ने कहा कि यह स्थापित कानूनी प्रथा रही है कि ऐसे वक्फ को पंजीकरण के बिना भी मान्यता प्राप्त है।
- CJI ने इसे रिकॉर्ड पर लेते हुए कहा:
“क्या 2013 से पहले वक्फ बाय यूजर को पंजीकृत करने की आवश्यकता थी?”
सिब्बल: “नहीं, यह आवश्यकता नहीं थी।”
4. क्या धार्मिक अधिकारों का हनन हो रहा है? (अनुच्छेद 25)
- CJI ने उदाहरण दिया:
“खजुराहो के मंदिर आज भी ASI संरक्षण में हैं, फिर भी पूजा होती है। तो क्या सरकार की अधिसूचना से प्रार्थना बंद हो जाती है?”
- सिब्बल ने कहा:
“2025 का संशोधन वक्फ को सरकारी नियंत्रण में ले आता है, जिससे धार्मिक स्वायत्तता का हनन होता है। सरकार मालिकाना हक न सही, पर नियंत्रण स्थापित करती है।”
संवैधानिक आपत्ति:
अनुच्छेद 25 – जो हर नागरिक को अपने धर्म का पालन, आचरण और प्रचार करने का अधिकार देता है – का उल्लंघन किया जा रहा है।
संवैधानिक सवाल जो उठते हैं:
प्रश्न | संबंधित अनुच्छेद | विवाद |
---|---|---|
क्या पंजीकरण के बिना वक्फ की वैधता समाप्त हो सकती है? | अनुच्छेद 300A (संपत्ति का अधिकार) | राज्य बिना न्यायिक प्रक्रिया के संपत्ति को वक्फ मानने से इनकार कर सकता है क्या? |
क्या सरकार धार्मिक संपत्तियों पर नियंत्रण कर सकती है? | अनुच्छेद 25, 26 | धार्मिक संस्थानों की स्वतंत्रता पर प्रभाव |
क्या सदियों पुरानी धार्मिक परंपरा को पंजीकरण न होने के कारण अमान्य किया जा सकता है? | विधिक परंपरा / नैतिक न्याय | ऐतिहासिक न्याय बनाम तकनीकी कानून |
निष्कर्ष:
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 का यह मामला भारतीय लोकतंत्र के चार स्तंभों – विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, और धर्मनिरपेक्षता – के बीच संतुलन का एक महत्वपूर्ण परीक्षण बन गया है।
- यह बहस केवल मुस्लिम धार्मिक संपत्तियों की नहीं है, बल्कि यह सवाल उठाती है कि राज्य की शक्ति की सीमा क्या है?
- क्या सरकार “वक्फ नहीं माना जाएगा” कहकर ऐतिहासिक धार्मिक विरासत को नकार सकती है?