लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों ने सबको काफी चौंकाया लेकिन एक बात जिसने सबका ध्यान खींचा वो था इस चुनाव में नोटा का इस्तेमाल. अगर आंकड़ों की मानें तो इस बार चुनाव में हर सौवें आदमी ने नोटा का बटन दबाया. करीब 6 लाख 78 हजार लोगों ने नोटा को चुना. नोटा के इस्तेमाल ने इस बार एक रिकॉर्ड बनाया जहां इंदौर में वोटर्स राजनीतिक पार्टियों से इतने नाराज हुए कि करीब 2 लाख 18 हजार से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबा दिया.
क्या है नोटा
निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानि ईवीएम में नोटा मतलब इनमें से कोई नहीं का विकल्प उपलब्ध करवाया था. ये ऐसे मतदाताओं के लिए है जो किसी भी दल के प्रत्याशी से खुश नहीं हैं लेकिन अपना वोट डालना चाहते हैं. नोटा का बटन दबाने का मतलब है कि वोटर को चुनाव लड़ रहा कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है. कई लोग नोटा को नेगेटिव वोट मानते हुए इसे वोट बेकार करना मानते हैं.
देश में अभी तक नोटा का ज्यादा प्रभाव चुनाव और मतदाताओं पर देखने को नहीं मिला क्योंकि इससे मतदाता अपना असंतोष तो जता देते हैं लेकिन राजनीतिक दलों पर इसका कोई बड़ा असर नहीं पड़ता. नोटा को मिले वोट सीधे तौर पर चुनाव के नतीजों को प्रभावित नहीं करते हैं. सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाला उम्मीदवार ही विजेता घोषित किया जाता है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानि एडीआर की रिपोर्ट की मानें तो साल 2013 में नोटा को चुनाव का हिस्सा बनाने के बाद साल 2014 के चुनाव में नोटा को 1.08 फीसदी यानि 60,00197 वोट मिले थे तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 1.06 फीसदी यानि 65,23,975 वोट मिले थे.
बात इंदौर सीट की करें तो यहां शंकर लालवानी ने जीत को हासिल की और उनके बाद सीट पर जिसे सबसे ज्यादा वोट मिले वो रहा नोटा. वोटों के अंतर पर निर्वाचन आयोग ने कहा कि वोटों का अंतर नोटा से नहीं बल्कि तीसरे नंबर की पार्टी के उम्मीदवार से तय किया जाएगा. यहां तीसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के संजय सोलंकी उम्मीदवार हैं. बीजेपी ने यहां अपना 35 साल का जीत का रिकॉर्ड कायम रखा.
कांग्रेस का प्रचार आया काम
इस सीट पर यानि इंदौर में कांग्रेस पार्टी मैदान में नहीं थी. चुनाव में कांग्रेस शुरू में ही बाहर हो गई थी क्योंकि कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने नामांकन वापसी की आखिरी तारीख 29 अप्रैल के दिन अपना पर्चा वापस ले लिया था और बीजेपी में शामिल हो गए थे. इसके बाद ऐसा पहली बार हुआ जब इंदौर के चुनावी इतिहास से कांग्रेस गायब हो गई. फिर कांग्रेस पार्टी ने यहां नोटा के लिए खूब प्रचार किया जिसका नतीजा ये रहा कि नोटा को 2 लाख 18 हजार वोट मिल गए. कांग्रेस ने नोटा अभियान छेड़ने के बाद ही दावा किया था कि यहां नोटा कम से कम दो लाख वोट हासिल करके नया रिकॉर्ड बनाएगा और चुनावी परिणाम आने के बाद इस दावे पर मुहर लग गई.
चुनाव के मौजूदा नियमों के मुताबिक अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं तो दूसरे सबसे ज्यादा वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है. तो अगर इंदौर में नोटा शंकर लालवानी से आगे भी निकल जाता तब भी शंकर लालवानी ही लोकसभा सांसद बन जाते.
नोटा का जादू सिर चढ़कर बोला
इस लोकसभा चुनाव से पहले भी नोटा का जादू खूब चला. पिछले लोकसभा चुनाव यानि 2019 में एक लाख 89 हजार 364 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था तो वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में एक लाख 90 हजार 907 लोगों ने नोटा के बटन का इस्तेमाल किया था. ईवीएम में प्रत्याशियों के नाम वाले बटन में सबसे नीचे नोटा का बटन होता है.
2019 के लोकसभा चुनाव में कुल उम्मीदवारों में से 68 फीसदी उम्मीदवारों को नोटा से भी कम वोट मिले. इसके पहले 2014 के लोकसभा आम चुनाव में मैदान में उतरे 240 प्रत्याशियों में से 137 को नोटा से कम वोट मिले. इस तरह 2014 और 2019 में पांच लोकसभा क्षेत्र में ही कुल मिलाकर एक लाख से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया था.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सिंहभूम लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा नोटा इस्तेमाल हुआ. सिंहभूम में 24,270 वोटरों ने नोटा का बटन दबाया और फिर आया खूंटी लोकसभा सीट का नंबर जहां 21,245 लोगों ने नोटा का बटन दबाया. राजमहल में 12919, गोड्डा में 18,683, दुमका में 14,396, कोडरमा में 31,164 और गिरिडीह में 19,798 वोटरों ने नोटा का इस्तेमाल कर लिया था.
स्वच्छता में नंबर वन शहर का खिताब हासिल करने वाले इंदौर ने नोटा के इस्तेमाल में भी नंबर वन का तमगा ले लिया. इससे पहले नोटा को सबसे ज्यादा वोट 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार के गोपालगंज जिले में मिले थे जहां 51,660 वोटरों ने नोटा का विकल्प चुना था.