छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या न केवल नृशंसता की मिसाल है, बल्कि यह मामले में राजनीतिक और प्रशासनिक मिलीभगत के गंभीर संकेत भी देता है।
हत्या का घटनाक्रम और पोस्टमार्टम रिपोर्ट:
- लापता होने की तारीख: मुकेश 1 जनवरी 2025 को लापता हुए थे।
- शव की बरामदगी: 3 जनवरी 2025 को उनका शव मुख्य आरोपित सुरेश चंद्राकर की बिल्डिंग के सेप्टिक टैंक से बरामद हुआ।
- पोस्टमार्टम रिपोर्ट:
- उनके शरीर पर गंभीर चोटों के निशान थे।
- लिवर के चार टुकड़े हो गए थे।
- पाँच पसलियाँ, कॉलर बोन, और हाथ की हड्डियाँ टूटी हुई थीं।
- दिल और गर्दन की हड्डी भी क्षतिग्रस्त थी।
- सिर पर 15 गंभीर घाव पाए गए।
- डॉक्टरों के अनुसार, उनकी मौत से पहले उन्हें लोहे या किसी भारी चीज से बुरी तरह मारा गया।
हत्या के कारण:
हत्या का कारण मुकेश चंद्राकर द्वारा सुरेश चंद्राकर की ठेकेदारी में बनी सड़क की कमियाँ उजागर करना बताया जा रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा था, जिसने सुरेश की साख को नुकसान पहुँचाया और इसी कारण से उसने कथित तौर पर इस घिनौने अपराध को अंजाम दिया।
मुख्य आरोपित और राजनीतिक संबंध:
- सुरेश चंद्राकर:
- कांग्रेस का SC मोर्चा सचिव और ठेकेदार।
- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का करीबी माना जाता है।
- 2019 में भूपेश बघेल की यात्रा के दौरान सुरेश ने उनका जोरदार स्वागत किया था और बड़े पोस्टर लगाए थे।
- राजनीतिक मिलीभगत:
- सुरेश का कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं से नज़दीकी संबंध, इस मामले में प्रशासनिक निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।
परिजनों के आरोप और गिरफ्तारी:
- परिजनों ने शुरुआत से ही सुरेश चंद्राकर पर मुकेश को अगवा करने का आरोप लगाया था।
- अब तक सुरेश और उसके भाई सहित 4 अन्य सहयोगियों को गिरफ्तार किया गया है।
पुलिस कार्रवाई और बुलडोजर नीति:
- सुरेश के ठिकानों पर प्रशासन ने बुलडोजर चलाया, जो संकेत देता है कि मामले को गंभीरता से लिया जा रहा है।
- पुलिस ने मामले की गहराई से छानबीन शुरू कर दी है।
इस घटना के व्यापक प्रभाव:
- पत्रकार सुरक्षा पर सवाल:
- यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि पत्रकारों के लिए ग्रामीण और राजनीतिक रूप से संवेदनशील इलाकों में काम करना जोखिम भरा है।
- मुकेश चंद्राकर जैसे पत्रकार, जो भ्रष्टाचार और कमियों को उजागर करते हैं, असुरक्षित हैं।
- राजनीतिक संरक्षण और अपराध:
- आरोपित के राजनीतिक संबंध इस बात की ओर इशारा करते हैं कि सत्ता से जुड़े लोग अपराधों में लिप्त हो सकते हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई में बाधाएँ खड़ी हो सकती हैं।
- प्रशासनिक निष्पक्षता:
- इस मामले में निष्पक्ष जांच और दोषियों को सख्त सजा सुनिश्चित करना पुलिस और न्यायपालिका के लिए एक बड़ी चुनौती है।
मामले की वर्तमान स्थिति:
- पुलिस इस नृशंस हत्या की गहराई से जांच कर रही है।
- पोस्टमार्टम रिपोर्ट और आरोपितों की गिरफ्तारी से मामला स्पष्ट हो रहा है, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप से जांच प्रभावित होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
यह घटना न केवल पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है, बल्कि यह प्रशासन और राजनीति के अंधकारमय पक्ष को भी उजागर करती है। दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठाना बेहद जरूरी है।