पूर्वोत्तर भारत में इस समय जो बाढ़, भारी बारिश और भूस्खलन का संकट उत्पन्न हुआ है, वह केवल एक सामान्य मौसमी घटना नहीं है — इसके पीछे बहुत गहरे और गंभीर कारण हैं।
स्थिति कितनी गंभीर है?
- अब तक 34 लोगों की जान जा चुकी है।
- असम, मेघालय, अरुणाचल, त्रिपुरा, सिक्किम और मणिपुर सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
- असम के सिलचर में 132 साल का बारिश का रिकॉर्ड टूटा — एक ही दिन में 415.8 मिमी बारिश (1893 में 290.3 मिमी थी)।
- अरुणाचल प्रदेश में इस साल दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश दर्ज की गई है (केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजु के अनुसार)।
- हजारों लोग राहत शिविरों में हैं और सैकड़ों गांव प्रभावित।
इतनी ज़्यादा बारिश और बाढ़ के पीछे के प्रमुख कारण:
1. जलवायु परिवर्तन (Climate Change)
- बारिश का पैटर्न बदल चुका है — अब कम समय में अत्यधिक बारिश (extreme rainfall) हो रही है।
- भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) की रिपोर्ट के अनुसार:
- 2000 से 2020 के बीच 100 मिमी/दिन से ज्यादा बारिश की घटनाएं 33% बढ़ गई हैं।
2. वनों की अंधाधुंध कटाई (Deforestation)
- पेड़ों की कटाई से मिट्टी की पकड़ कमजोर होती है, जिससे भूस्खलन और जलभराव होता है।
3. अवैध खनन और निर्माण
- पहाड़ी इलाकों में अवैध निर्माण और खनन ने भूगर्भीय संतुलन बिगाड़ा है।
- इससे जल निकासी की प्राकृतिक प्रणाली बाधित हुई है।
4. वायुमंडलीय अस्थिरता
- इस क्षेत्र में चक्रवाती परिसंचरण और गर्त (troughs) की गतिविधि तेज हुई है, जिससे मौसम और अधिक अस्थिर हो गया है।
नुकसान और वर्तमान हालात:
- असम: 19 जिलों में 3.6 लाख लोग प्रभावित, ब्रह्मपुत्र और 5 अन्य नदियां उफान पर।
- मेघालय: 10 जिले बुरी तरह प्रभावित, सड़कों और घरों को नुकसान।
- सिक्किम: 1200+ पर्यटक फंसे हुए, भूस्खलन से बचाव कार्य रुका।
- त्रिपुरा: 10,000+ लोग प्रभावित।
- अरुणाचल: 9 मौतें, सबसे अधिक बारिश, कई जिलों में भारी नुकसान।
सरकारी प्रतिक्रिया:
- राहत-बचाव के लिए एयरफोर्स, एनडीआरएफ और असम राइफल्स की तैनाती।
- असम और अरुणाचल में मृतकों के परिजनों को ₹4 लाख की सहायता।
- गृह मंत्री अमित शाह ने सभी राज्यों से संपर्क कर हरसंभव मदद का भरोसा दिया है।
उन्होंने कहा – “मोदी सरकार पूर्वोत्तर के लोगों के साथ चट्टान की तरह खड़ी है।”
निष्कर्ष:
पूर्वोत्तर में जो हो रहा है वह एक प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ मानवजनित संकट भी है। जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित विकास और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ ने इस आपदा को और भी घातक बना दिया है।