कुछ लोग अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों की आड़ में देश के खजाने पर डाका डाल रहे हैं। ऐसे लोग केवल कागजों पर मदरसे, कॉलेज या अन्य तरह के शिक्षण संसथान चलाते हैं और उनके छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति भी लेते हैं। इसकी भनक लगते ही 2022 में केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने ऐसे संस्थानों में पढ़ने वाले पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्रों की छात्रवृत्ति बंद कर दी। इसके बाद अल्पसंख्यक मंत्रालय ने 100 जिलों के 1,572 अल्पसंख्यक संस्थानों की प्रारंभिक जांच की जिम्मेदारी ‘नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइइड इकोनॉमिक रिसर्च’ को दी। जांच से पता चला है कि 1,572 शिक्षण संस्थानों में से 830 संस्थान फर्जी हैं। इनमें से कइयों का तो अस्तित्व ही नहीं है। फर्जी पाए गए शिक्षण संस्थानों में ज्यादातर मदरसे हैं। जम्मू—कश्मीर और केरल में फर्जीवाड़ा की सारी हदें पार कर दी गई हैं। पता चला है कि जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले और केरल के मल्लपुरम जिले मेें प्रतिवर्ष जितने छात्रों के लिए छात्रवृत्ति ली गई, उतने तो इन जिलों के संस्थानों में छात्र पढ़ ही नहीं सकते हैं। इन संस्थानों की इतनी क्षमता ही नहीं है। यह भी कहा जा रहा है कि 22 छात्रों के बैंक खातों का मोबाइल नंबर एक ही था। ऐसे भी कई संस्थान मिले, जो वर्षों से बंद हैं। इसके बावजूद वहां पढ़ने वाले छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति ली जा रही थी।
असम, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और पंजाब में सबसे अधिक फर्जी मदरसे या इसी तरह के शिक्षण संस्थान मिले हैं। छत्तीसगढ़ के 62 संस्थानों की जांच हुई और ये सभी फर्जी निकले। राजस्थान में 128 संस्थानों की जांच कराई गई। इनमें 99 नकली पाए गए। असम में तो 68 प्रतिशत अल्पसंख्यक संस्थान फर्जी निकले हैं। ऐसे ही कर्नाटक के 64 प्रतिशत, उत्तराखंड के 60 प्रतिशत, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 40-40 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 39 प्रतिशत अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान फर्जी निकले हैं। भ्रष्टाचार की जानकारी मिलने के बाद अल्पसंख्यक मंत्रालय ने इन संस्थानों के खातों पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई है।
बता दें कि इन संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों को केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय छात्रवृत्ति देता है। इसके लिए पात्र अल्पसंख्यक संस्थान को ‘नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल’ पर अपना पूरा विवरण देना होता है। इसके साथ ही ये संस्थान जिला स्तर पर तैनात नोडल अधिकारी से सत्यापित कराकर बैंक विवरण और छात्रों की अन्य जानकारी मंत्रलय को भेजते हैं। इसके बाद मंत्रालय सीधे छात्रों के बैंक खातों में छात्रवृत्ति भेजता है। गत पांच वर्ष में इन संस्थानों को 144 करोड़ रु. से अधिक की राशि छात्रवृत्ति के नाम पर दी गई है। एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में 1,80,000 शिक्षण संस्थान अल्पसंख्यक मंत्रलय से संबंद्ध हैं। इनमें हर श्रेणी के संस्थान हैं। किसी में पहली कक्षा से 12वीं तक की पढ़ाई होती है, तो किसी में उच्च शिक्षा दी जाती है। यानी ये संस्थान ऐसे हैं, जहां पहली कक्षा से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई होती है।
अल्पसंख्यक संस्थानों के छात्रों को छात्रवृत्ति देने का निर्णय सोनिया-मनमोहन सरकार ने 2007-08 में लिया था। ऐसे छात्रों को प्रतिवर्ष 4,000 रु. से लेकर 25,000 रु. तक की छात्रवृत्ति मिलती है। अनुमान है कि अब तक इस मद में 22 हजार करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं। जिस तरह के फर्जी शिक्षण संस्थान मिल रहे हैं, उसे देखते हुए यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि छात्रवृत्ति के नाम पर कितने रु. का घोटाला किया गया है।