चांद को फतह करने के बाद अब भारत का परचम सूरज पर लहराने वाला है। आज ISRO का सूर्य मिशन ‘आदित्य L1’ अपने फाइनल पॉइंट में एंट्री लेने वाला है। 2 सितंबर को शुरू हुई आदित्य एल1 की यात्रा 126 दिन बाद 37 लाख किलोमीटर का सफर पूरा करके हैलो ऑर्बिट में पहुंचने वाली है। इसके बाद भारत की पहली सोलर ऑब्जरवेटरी धरती से करीब 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर स्थापित हो जाएगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आदित्य एल1 आज शाम 4 बजे अपनी मंजिल पर पहुंच जाएगा।
5 सालों तक सौरमंडल की स्टडी करेगा आदित्य एल1
बता दें कि आदित्य एल1 अगले 5 सालों तक सौरमंडल की स्टडी करेगा। यह भारत की पहली अंतरिक्ष ऑब्जर्वेटरी है और इसको सफलतापूर्वक ऑर्बिट में पहुंचाने के लिए इसरो के वैज्ञानिक लगातार मॉनिटरिंग कर रहे हैं। 2023 में चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग से पूरी दुनिया में अपनी काबिलियत का लोहा मनवा चुका ISRO 2024 की शुरुआत में अपने सूर्य मिशन आदित्य L1 को उसकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए तैयार है। 2 सितंबर 2023 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से भारत का यह पहला सूर्य मिशन लॉन्च किया गया था।
फिलहाल वैज्ञानिकों के सामने यह बड़ी चुनौती
बता दें कि सूर्य के एल1 पॉइंट पर पर धरती और सूर्य का ग्रैविटेशनल फोर्स एक समान रहता है। ISRO के वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी चुनौती L1 प्वाइंट के चारों ओर एक ऑर्बिट में आदित्य एल1 को रखना है। आज शाम 4 बजे आदित्य L1 स्पेसक्राफ्ट धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर लग्रेंज1 पॉइंट के पास निर्धारित ‘हैलो ऑर्बिट’ में स्थापित कर दिया जाएगा। ISRO के मुताबिक ऐसा करने के लिए आदित्य L1 में लगे मोटर्स को इस तरह से फायर किया जाएगा कि हमारा उपग्रह L1 पॉइंट के पास तय कक्षा में स्थापित हो जाए। इस मैनुवर के सफल होने के साथ ही आदित्य L 1 उपग्रह लग्रेंज1 पॉइंट के चारों ओर घूमते हुए सूरज की स्टडी करना शुरू कर देगा।
आखिर एल1 पर ही क्यों क्यों जा रहा है आदित्य?
सवाल ये है कि आखिर इसरो अपने सैटेलाइट को लग्रेंज पॉइंट वन या एल1 पर ही क्यों स्थापित करना चाहता है। तो इसका जवाब है कि सूरज और पृथ्वी के बीच एल1 से एल5 तक पांच लग्रेंज पॉइंट हैं। सीधी भाषा में समझें तो ये पॉइंट अंतरिक्ष में पार्किंग की जगह की तरह काम करते हैं। 5 खास जगहें हैं जहां एक छोटी चीज बड़े ग्रह के साथ एक स्थिर पैटर्न में घूम सकती है। लग्रेंज पॉइंट वो जगह है जहां यह छोटी चीज दोनों खगोलीय पिंडों के साथ मिलकर चल सकती है और यहां यहां ग्रहण के छाया आने की भी संभावना नहीं होती है। इसका मतलब है कि लग्रेंज पॉइंट पर रखे यान को अपनी जगह बनाए रखने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती।
आदित्य L1 के सातों पेलोड क्या काम करेंगे?
पहले मंगलयान और फिर चंद्रयान की सफलता के बाद ISRO के वैज्ञानिकों के हौसले बुलंद हैं, और अब भारत का परचम सूर्य पर भी लहराने वाला है। बता दें कि आदित्य एल वन में 7 पेलोड लगे हैं। ये सातों पेलोड सूर्य के अलग-अलग रहस्यों से पर्दा उठाएंगे।
आदित्य L1 का कौन सा पेलोड क्या काम करेगा:
- VELC यानी विजिबल लाइन एमिसन कोरोनाग्राफ : सूरज की हाई डेफिनेशन फोटो खींचेगा
- SUIT यानी सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलिस्कोप : सूरज की अल्ट्रावायलेट वेवलेंथ की फोटो लेगा
- ASPEX यानी आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट : अल्फा पार्टिकल्स की स्टडी करेगा
- PAPA यानी प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य : सूरज की गर्म हवाओं की स्टडी करेगा
- SoLEXS यानी सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर : सूरज से निकलने वाले एक्स-रे और उसमें आने वाले बदलावों की स्टडी करेगा
- HEL10S यानी हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर: हाई-एनर्जी एक्स-रे की स्टडी करेगा
- MAG यानी एडवांस्ड ट्राई-एक्सियल हाई रेजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर्स: मैग्नेटिक फील्ड की स्टडी करेगा
50 से ज्यादा सैटेलाइट्स की सुरक्षा करेगा आदित्य L1
‘हैलो ऑर्बिट’ में पहुंचने के बाद अगले 400 करोड़ रुपये की लागत वाला आदित्य L1 मिशन अगले 5 साल तक भारत के पचासों हजार करोड़ रुपये के 50 से ज्यादा सैटेलाइट्स की सुरक्षा करेगा। इसके साथ ही यह कोरोना से निकलने वाली गर्मी और गर्म हवाओं की स्टडी करेगा। इस मिशन में यह भी जानने की कोशिश होगी कि सौर तूफानों के आने की वजह और उनका धरती के वायुमंडल पर क्या असर होता है। इसके अलावा आदित्य L1 सौर हवाओं के विभाजन और तापमान की स्टडी करेगा एवं सौर वायुमंडल को समझने का प्रयास करेगा।