अगले एक-दो सालों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) का इस्तेमाल कर अपराध पर कारगर रोक लगाने की रणनीति बनेगी। सीसीटीएनएस, ई-प्रीजन, ई-कोर्ट, ई-प्रोसेक्यूशन, ई-फारेंसिक और अपराधियों के फिंगरप्रिंट के डाटा बड़े पैमाने पर उपलब्ध होने की जानकारी देते हुए केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि इस डाटा का इस्तेमाल एआइ के सहारे अपराध रोकने की रणनीति बनाने में की जाएगी।इसके साथ ही उन्होंने तीन नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद सजा दर में हुई बढ़ोतरी का हवाला देते हुए आने वाले समय में सही मायने में कानून का शासन लागू होने का भरोसा जताया।
गृह मंत्री अमित शाह के अनुसार, नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद सजा की दर में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है। पहले जहाँ सजा की दर 54% थी, अब यह लगभग 70% के आसपास पहुँच गई है। इसका मतलब है कि अब अधिक अपराधियों को अदालतों से सजा मिल रही है, जो न्याय की प्रभावशीलता को दर्शाता है।
शाह ने यह भी कहा कि इन नए कानूनों की वजह से त्वरित न्याय मिलना शुरू हुआ है। इससे पीड़ितों को समय पर राहत मिल रही है और अपराधियों को सजा देने में देरी नहीं हो रही।
उन्होंने कहा कि सरकार की कोशिश सजा की दर में 40 फीसद की बढ़ोतरी करने की है। यह फारेंसिक की मदद के बिना नहीं हो पाएगा। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में भारत में सजा की दर दुनिया में सबसे अच्छी होगी। अमित शाह ने कहा कि नए आपराधिक कानूनों में सात साल से अधिक सजा के मामले की जांच के लिए लगभग 30 हजार फारेंसिक एक्सपर्ट की जरूरत का अनुमान है। लेकिन नेशनल फारेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (एनएफएसयू) से हर साल 32 हजार फारेंसिक एक्सपर्ट पढ़कर निकलेंगे।
भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली में हो रहे गहरे और संरचनात्मक सुधारों को दर्शाता है। आइए इसे मुख्य बिंदुओं में समझते हैं:
एनएफएसयू (राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय) का विस्तार
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वर्तमान में: 7 परिसर देश के विभिन्न राज्यों में कार्यरत हैं।
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अगले 6 महीनों में: 9 नए परिसर शुरू किए जाएंगे।
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भविष्य की योजना: 10 और नए परिसर स्थापित किए जाएंगे।
इसका उद्देश्य है कि फॉरेंसिक साइंस को हर राज्य और बड़े क्षेत्रों तक पहुँचाया जाए, ताकि अपराधों की जांच वैज्ञानिक और निष्पक्ष तरीके से हो।
फॉरेंसिक साइंस का महत्व
“आरोपी और फरियादी दोनों के साथ अन्याय नहीं हो” — अमित शाह
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फॉरेंसिक साइंस को आपराधिक न्याय प्रणाली का मूल हिस्सा बनाया जा रहा है।
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इससे केस की जांच में स्पष्टता और निष्पक्षता बढ़ेगी।
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झूठे आरोपियों को जल्द बरी किया जा सकेगा और असली अपराधियों को पकड़ना आसान होगा।
सीसीटीएनएस (Crime and Criminal Tracking Network and Systems)
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100% पुलिस थानों में अब ऑनलाइन FIR दर्ज करने की सुविधा है।
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अब तक 14.19 करोड़ एफआईआर और संबंधित दस्तावेज ऑनलाइन हैं।
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इससे:
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नागरिकों को पारदर्शिता और सुविधा मिलती है।
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केस ट्रैकिंग आसान होती है।
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डेटा एनालिसिस और क्राइम पैटर्न पहचानने में मदद मिलती है।
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22 हजार अदालतें ई-कोर्ट से जुड़ चुकी हैं। दो करोड़ 19 लाख डाटा ई-प्रिजन का, 39 लाख केसों का ई-प्रोसेक्यूशन का डाटा, 39 लाख फारेंसिक साक्ष्य ई-फारेंसिक पर आनलाइन उपलब्ध है। इसके साथ नेशनल ऑटोमेटेड फिंगरप्रिंट आइडेनटिफिकेशन सिस्टम (नफीस) पर एक करोड़ 53 लाख आरोपितों के फिंगरप्रिंट और मानव तस्करों का डाटा भी ऑनलाइन हो गया है। उन्होंने कहा कि अलग-अलग उपलब्ध इन डाटा को आपस में जोड़ने और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के माध्यम से इसका विश्लेषण किया जाएगा, जिससे अपराध रोकने की सटीक रणनीति बनाने में मदद मिलेगी।