अजमेर अभी चर्चा में है। कट्टर इस्लामी लोग मोइनुद्दीन चिश्ती (Moinuddin Chishti) को लेकर कही गई एक बात से नाराज हैं। ये लोग कभी इसे ‘सूफी संत’ बोलते हैं, कभी हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ के नाम से पुकारते हैं। पैगंबर मोहम्मद पर लिखे-पढ़े-बोले गए बातों से ‘सर तन से जुदा’ करने वाली भीड़ अब ‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती या हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ के लिए भी लोगों की गर्दन काटने पर आमादा हैं। आखिर कौन था यह शख्स? कहाँ से आया था? क्या करता था?
जिस शख्स के नाम पर किसी का गला काट दिया जाए, ‘सर तन से जुदा’ करने की धमकी दी जाए, उस ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) या मोइनुद्दीन चिश्ती से जुड़ा इतिहास हिंदू-विरोधी है, मंदिर/मूर्ति-भंजक है, गौहत्या के पाप से सना हुआ है। ये सिर्फ आरोप नहीं हैं, ऐतिहासिक तथ्य हैं, वो भी सबूतों के साथ। इतिहासकार एमए खान की पुस्तक से लेकर मध्ययुगीन लेख ‘जवाहर-ए-फरीदी’ में लिखी गई बातों में इसकी कट्टरता का उल्लेख है। शेख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी की अखबार-उल-अख्यार ( Akhbar-Ul-Akhyar) से भी सचित्र उदाहरण लिया गया है।
‘सूफी संत’ का लिबास ओढ़ कर जो भारत आए, उन मकसद क्लियर था। इतिहास ने आपसे उनके मकसद को छिपाया, इसलिए वो ‘सूफी संत’ कहे जाते हैं, आप जाने-अनजाने जाकर चादर चढ़ा आते हैं। हकीकत में अधिकांश सूफी संत या तो इस्लामिक आक्रांताओं की आक्रमणकारी सेनाओं के साथ भारत आए थे, या इस्लाम के सैनिकों द्वारा की गई कुछ व्यापक विजय के बाद। लेकिन इन सबके भारत आने के पीछे सिर्फ एक ही लक्ष्य था और वह था इस्लाम का प्रचार। इसके लिए उलेमाओं के क्रूरतम आदेशों के साथ गाने-बजाने की आड़ में हिन्दुओं की आस्था पर चोट करने वाले ‘संतों’ से बेहतर और क्या हो सकता था?
‘शांतिपूर्ण सूफीवाद’ का मिथक, कई सदियों तक इस्लामिक ‘विचारकों’ और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा खूब फैलाया गया है। वास्तविकता इन दावों से कहीं अलग और विपरीत है। वास्तविकता यह है कि इन सूफी संतों को भारत में इस्लामिक जिहाद को बढ़ावा देने, ‘काफिरों’ के धर्मांतरण और इस्लाम को स्थापित करने के उद्देश्य से लाया गया था।
इसी में एक सबसे प्रसिद्ध नाम आता है ‘सूफी संत’ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) का, जिसे हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ के नाम से भी पुकारा जाता है। सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म ईरान में हुआ था, लेकिन वो राजस्थान के अजमेर में दफनाया गया था।
इतिहासकार एमए खान ने अपनी पुस्तक ‘इस्लामिक जिहाद: एक जबरन धर्मांतरण, साम्राज्यवाद और दासता की विरासत’ (Islamic Jihad: A Legacy of Forced Conversion, Imperialism, and Slavery) में इस बारे में विस्तार से लिखा है। उदाहरण के लिए औलिया इस्लाम ने अपने शिष्य शाह जलाल को बंगाल के हिंदू राजा के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए 360 अन्य शागिर्दों के साथ बंगाल भेजा था।
पुस्तक में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि वास्तव में, हिंदुओं के उत्पीड़न का विरोध करने की बात तो दूर, इन सूफी संतों ने बलपूर्वक हिंदुओं के इस्लाम में धर्म परिवर्तन में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। यही नहीं, ‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्दों ने हिंदू रानियों का अपहरण किया और उन्हें मोईनुद्दीन चिश्ती को उपहार के रूप में प्रस्तुत किया।
गौरी के साथ भारत आकर अजमेर में लगाया था डेरा
यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि चिश्ती, शाह जलाल और औलिया जैसे सूफी ‘काफिरों’ के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए भारत आए थे। उदाहरण के लिए- मोइनुद्दीन चिश्ती, मुइज़-दीन मुहम्मद ग़ोरी की सेना के साथ भारत आए और गोरी द्वारा अजमेर को जीतने से पहले वहाँ गोरी की तरफ से अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान की जासूसी करने के लिए अजमेर में बस गए थे। यहाँ उन्होंने पुष्कर झील के पास अपने ठिकाने स्थापित किए।
प्रतिदिन गाय का वध और मंदिरों को अपवित्र करते थे चिश्ती के शागिर्द
मध्ययुगीन लेख ‘जवाहर-ए-फरीदी’ में इस बात का उल्लेख किया गया है कि किस तरह चिश्ती ने अजमेर की आना सागर झील, जो कि हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है, पर बड़ी संख्या में गायों का क़त्ल किया, और इस क्षेत्र में गायों के खून से मंदिरों को अपवित्र करने का काम किया था। मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्द प्रतिदिन एक गाय का वध करते थे और मंदिर परिसर में बैठकर गोमांस खाते थे।
आना सागर झील का निर्माण ‘राजा अरणो रा आनाजी’ ने 1135 से 1150 के बीच करवाया था। ‘राजा अरणो रा आनाजी’ सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पिता थे। आज इतिहास की किताबों में अजमेर को हिन्दू-मुस्लिम’ समन्वय के पाठ के रूप में तो पढ़ाया जाता है, लेकिन यह जिक्र नहीं किया जाता है कि यह सूफी संत भारत में जिहाद को बढ़ावा देने और इस्लाम के प्रचार के लिए आए थे, जिसके लिए उन्होंने हिन्दुओं के साथ हर प्रकार का उत्पीड़न स्वीकार किया।
पृथ्वीराज चौहान की जासूसी और उन्हें पकड़वाने में चिश्ती की भूमिका
खुद मोइनुद्दीन चिश्ती ने तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को पकड़ लिया था और उन्हें ‘इस्लाम की सेना’ को सौंप दिया। लेख में इस बात का प्रमाण है कि चिश्ती ने चेतावनी भी जारी की थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था – “हमने पिथौरा (पृथ्वीराज) को जिंदा पकड़ लिया है और उसे इस्लाम की सेना को सौंप दिया है।”
हिन्दू राजा की बेटी ‘बीबी उमिया’ का अपहरण और निकाह
मोइनुद्दीन चिश्ती का एक शागिर्द था मलिक ख़ितब। उसने एक हिंदू राजा की बेटी का अपहरण कर लिया और उसे चिश्ती को निकाह के लिए ‘उपहार’ के रूप में प्रस्तुत किया।
‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती ने खुशी-खुशी ‘उपहार’ स्वीकार किया और उसे ‘बीबी उमिया’ नाम दिया। मोइनुद्दीन चिश्ती की सोच थी पैगंबर मोहम्मद की राह पर चलना। ऊपर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पीएचडी के लिए जमा की गई थीसिस में भी यह बात लिखी गई है। इसके अलावा खुद अजमेर दरगाह की वेबसाइट पर भी इसकी जानकारी पहले उपलब्ध थी। इसका स्क्रीनशॉट आप नीचे देख सकते हैं।