बांग्लादेश से निर्वासित और भारत में शरण लेने वाली लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस्लाम और आतंकवाद का कनेक्शन जोड़ा है। उनका कहना है कि “जब तक इस्लाम रहेगा, आतंकवाद भी जिंदा रहेगा। गैर-मुसलमानों को कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी, स्वतंत्र विचारकों और तर्कवादियों को कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी, महिलाओं को कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी।”
उन्होने आगे कहा कि “जब तक इस्लाम जीवित रहेगा, फूल मुरझाते रहेंगे, बच्चे मरते रहेंगे, लाखों मरे हुए कबूतर की तरह गिरते रहेंगे। इस्लाम की कोख से नफरत पैदा होती रहेगी, बदसूरत राक्षस पैदा होते रहेंगे।”
दिल्ली साहित्य महोत्सव में अपने विचार रखते हुए तस्लीमा नसरीन ने कहा कि इस्लाम पिछले 1400 सालों में थोड़ा भी नहीं बदला इसलिए बच्चों को सिर्फ धार्मिक किताबें पढ़ाना बेहद खतरनाक है। तस्लीमा नसरीन ने भारत को अपना घर बताते हुए कहा कि जब वो यूरोप या अमेरिका में रही तो हमेशा पराई रही, लेकिन जब कोलकाता आई तो लगा कि जैसे अपने घर लौटी हैं।
इस्लामी कट्टरता, महिला अधिकार, मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करते हुए उन्होने कहा कि
“जब तक इस्लाम जीवित रहेगा, कोई भी राज्य सभ्य नहीं बन पाएगा, कट्टरता हावी रहेगा “
यूनिफॉर्म सिविल कोड का समर्थन करते हुए तस्लीमा नसरीन ने कहा कि भारत, बाग्लादेश जैसे देशों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून होना चाहिए। मदरसों की शिक्षा पर सवाल उठाते हुए उन्होने कहा कि बच्चों को संपूर्ण ज्ञान यहाँ नहीं मिल सकता।
तस्लीमा नसरीन ने कहा कि 2016 के ढाका हमले में मुसलमानों को इसलिए मार दिया गया क्योंकि वे कलमा नहीं पढ़ पाए थे। 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में भी आतंकवादियों ने पर्यटकों को कलमा पढ़ने के लिए कहा। जब आस्था को तर्क और मानवता पर हावी होने दिया जाता है, तो यही होता है।”