सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि सिटिजनशिप एक्ट की धारा-6 का लाभ पाने वालों का डेटा पेश करें। बांग्लादेशी घुसपैठी जो 1966 से 1971 के बीच में आए है, उनका कोई मैटेरियल नहीं दिख रहा है, जिससे पता चले कि बड़ी संख्या में इन्हें सिटिजनशिप दिए जाने से असम के डेमोग्राफिक और कल्चरल पहचान पर फर्क पड़ गया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच जनों की संवैधानिक बेंच ने सिटिजनशिप एक्ट की धारा 6 ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने असम में अवैध घुसपैठियों से संबंधित सिटिजनशिप एक्ट की धारा 6. ए का मंगलवार से परीक्षण शुरू कर दिया है। इस प्रावधान को चुनौती देते हुए कहा गया है कि यह प्रावधान मनमाना है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने सीमा पार से घुसपैठ की समस्या को ध्यान देते हुए कहा कि 1971 के भारत पाकिस्तान बुद्ध के कारण बंग्लादेशी देश की सीमा में घुसे थे और इस बारे में मानवीय पहलू को कोर्ट ने रेफर किया। इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने दलील की शुरुआत की। नागरिकता कानून की धारा-6 ए की वैधता को चुनौती देते हुए इसे निरस्त करने की गुहार लगाई गई है।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने पीठ से कहा कि शरणार्थियों की आमद और विशेष प्रावधान के कारण मूल निवासियों के सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और अन्य अधिकार प्रभावित हो रहे हैं। इस पर पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता से कहा, ‘लेकिन आपके तर्क का टेस्ट करने के लिए हमारे सामने ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो यह बताए कि 1966-71 के बीच आए नागरिकों को कुछ लाभ देने का प्रभाव इतना गंभीर था कि राज्य की जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक पहचान उन पांच वर्षों से प्रभावित हुई थी।’
न्यायालय ने कहा, ‘हां, हमें यह देखना होगा कि क्या धारा 6ए का प्रभाव ऐसा था कि 1966 से 1971 के बीच राज्य में जनसांख्यिकी में इस हद तक आमूलचूल परिवर्तन हुआ कि असम की सांस्कृतिक पहचान प्रभावित हो गयी। पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से 1966 से 16 जुलाई 2013 तक कानून के लाभार्थियों पर डेटा प्रदान करने के लिए कहा। मेहता ने आश्वासन दिया कि वह इसे दाखिल करेंगे।
सॉलिसिटर जनरल ने पहले राज्यसभा में एक सांसद द्वारा पेश किए गए आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि 1966 और 1971 के बीच 5.45 लाख अवैध अप्रवासी असम आए थे। उन्होंने कहा कि 1951 से 1966 तक यह आंकड़ा 15 लाख था। प्रावधान का विरोध करने वाले असम के कई याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए दीवान ने कहा कि इसने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है। मामले में बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। याचिकाकर्ताओं ने केवल पूर्वोत्तर राज्य पर लागू होने वाली नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देते हुए न्यायालय से कहा कि इससे असम के स्थानीय लोग अपनी ही मातृभूमि में भूमिहीन और विदेशी बनने के लिए बाध्य हैं। इस मुद्दे पर 2009 में गैर सरकारी संगठन असम पब्लिक वर्क्स द्वारा दायर याचिका सहित कम से कम 17 याचिकाएं शीर्ष अदालत में लंबित हैं।