रिपोर्ट के अनुसार दरअसल, बुधवार को कोर्ट द्वारा संबंधित पक्षों को सर्वे रिपोर्ट की कॉपी उपलब्ध कराए जाने की अनुमति दे दी गई थी. हिंदू पक्ष ने लगातार इस रिपोर्ट की कॉपी मांगी थी. अनुमति मिलने के बाद हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों सहित कुल 11 लोगों ने पहले दिन काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी परिसर पर एएसआई सर्वे रिपोर्ट हासिल करने के लिए कोर्ट में आवेदन किया था.
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर ASI की रिपोर्ट सामने आ गई है. जीपीआर सर्वे पर ASI ने कहा है कि यहां पर एक बड़ा भव्य हिन्दू मंदिर था और ढांचे यानी मस्जिद के पहले एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था. ASI की सर्वे रिपोर्ट में मंदिर होने के 32 से ज्यादा प्रमाण मिलने की बात कही गई है. बताया गया है कि 32 ऐसे शिलालेख मिले हैं जो पुराने हिंदू मंदिरों के हैं. एएसआई की रिपोर्ट कहती है कि हिंदू मंदिर के खंभों को थोड़ा बहुत बदलकर नए ढांचे के लिए इस्तेमाल किया गया.
एएसआई के मुताबिक, वर्तमान में जो ढांचा है उसकी पश्चिमी दीवार पहले के बड़े हिंदू मंदिर का हिस्सा है और पिलर के नक्काशियों को मिटाने की कोशिश की गई. हिंदू पक्ष के मुताबिक, वह जो दलीलें दे रहा था उसकी तस्दीक एएसआई के सर्वे में मिले सबूत करते हैं. इस सर्वे रिपोर्ट के कुछ अंश सामने आए हैं जिन्होंने एक बार अयोध्या फैसले की याद दिला दी है. हिंदू पक्ष को उम्मीद है कि जस तरह की कानूनी लड़ाई के बाद अयोध्या का फैसला उसके हक में आया, उसकी तरह से अदालती फैसला भी उसके पक्ष में आएगा. सर्वेक्षण रिपोर्ट में मंदिर के अस्तित्व के पर्याप्त सबूत मिलने की बात कही गई, जिस पर मस्जिद का निर्माण किया गया था.
एएसआई रिपोर्ट का निष्कर्ष
जिन क्षेत्रों का अवलोकन और वैज्ञानिक परीक्षण करने के बाद भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण से पहले वहां एक बड़ा हिंदू मंदिर मौजूद था, वो इस प्रकार हैं:
- मस्जिद से पहले वहां बने मंदिर में बड़ा केंद्रीय कक्ष और उत्तर की ओर छोटा कक्ष था.
- मौजूदा ढांचे में पहले से मौजूद संरचना का केंद्रीय कक्ष और मुख्य प्रवेश द्वार.
- मस्जिद का पश्चिमी कक्ष और पश्चिमी दीवार.
- मस्जिद के निर्माण में मंदिर के खंभों के साथ ही अन्य हिस्सों में थोड़ा बहुत बदलाव कर इसे मस्जिद का आकार दिया गया.
- मौजूदा ढांचे पर अंकित शिलालेख.
- पत्थरों पर अरबी और फ़ारसी के शिलालेख.
- तहखानों में मूर्तिकला के अवशेष.
केंद्रीय कक्ष और मुख्य प्रवेश द्वार में क्या मिला?
मंदिर में पहले एक बड़ा केंद्रीय कक्ष था और उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में भी कम से कम एक कक्ष था. इनमें से तीन कक्षों (उत्तर, दक्षिण और पश्चिम) के अवशेष अभी भी मौजूद हैं लेकिन पूर्व में स्थित कक्ष के अवशेषों का पता नहीं लगाया जा सका है. वह विशेष क्षेत्र पत्थर के फर्श वाले एक मंच के नीचे ढका हुआ है. जो मंदिर का केंद्रीय कक्ष था वह अब मस्जिद का केंद्रीय कक्ष है. सजाए गए मेहराबों के निचले सिरों पर उकेरी गई जानवरों की आकृतियों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था और गुंबद के अंदरूनी हिस्से को ज्यामितीय डिजाइनों से सजाया गया था.
मंदिर के इस केंद्रीय कक्ष का मुख्य प्रवेश द्वार पश्चिम से था. इसे पत्थर की चिनाई से बंद कर दिया गया था. प्रवेश द्वार को जानवरों, पक्षियों की नक्काशी से सजाया गया था. प्रवेश द्वार को ईंटों, पत्थरों से बंद कर दिया गया था. इस प्रवेश द्वार की चौखट पर उकेरी गई किसी पक्षी की आकृति के अवशेष पाए गए गए हैं.
पश्चिमी कक्ष और पश्चिमी दीवार में क्या पाया गया?
पश्चिमी कक्ष का पूर्वी आधा भाग अभी भी मौजूद है जबकि पश्चिम का आधा हिस्सा नष्ट हो चुका है. पश्चिमी का एक गलियारा उत्तर, दक्षिण कक्षों से जुड़ा हुआ था. पश्चिमी दीवार पहले से मौजूद मंदिर का हिस्सा है.
खंभों और स्तंभों पर क्या पाया गया?
यहां स्थित खंभों और पायलटर्स को मोडिफाई किया गया है जो मूल रूप से हिंदू मंदिर का हिस्सा थे. उनके पुन: उपयोग के लिए उन पर उकेरी गई आकृतियों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया और उनकी जगह फूलों के डिज़ाइन लगा दिए गए.
जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर…
मौजूदा और पहले से मौजूद ढांचे से 34 शिलालेख पाए गए थे. इनमें से 32 शिलालेखों की प्रतिकृतियां बनाई गईं. शिलालेख देवनागरी, ग्रंथ, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों में पाए गए हैं. देवताओं के तीन नाम – जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर भी पाए गए. महा-मुक्तिमंडप जैसे शब्दों का उल्लेख तीन शिलालेखों में किया गया है. मस्जिद में शिलालेखों के फिर से किए गए उपयोग से पता चलता है कि मस्जिद के निर्माण में पहले की संरचनाओं को नष्ट कर दिया गया था और इसके हिस्सों का पुन: उपयोग किया गया था.
एक पत्थर पर अंकित शिलालेख से पता चलता है कि औरंगजेब के शासनकाल (1676-77) के दौरान मस्जिद का निर्माण किया गया था. शिलालेख में यह भी कहा गया है कि 1792-93 में मस्जिद की मरम्मत की गई थी. एएसआई ने औरंगजेब की जीवनी का हवाला देते हुए कहा है कि 2 सितंबर, 1669 को औरंगजेब ने कथित तौर पर काशी में विश्वनाथ के मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था.
तहखानों में मिले मूर्तिकला अवशेष
एएसआई का कहना है कि एक तहखाने में फेंकी गई मिट्टी के नीचे हिंदू देवताओं की मूर्तियां और नक्काशीदार वास्तुशिल्प अवशेष दबे हुए पाए गए. ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) प्रौद्योगिकी के उपयोग पर एएसआई का कहना है कि उत्तरी हॉल में जीपीआर सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि उत्तरी दरवाजे की ओर फर्श में एक गुफानुमा आकृति थी. दक्षिण गलियारे में तहखाने के स्तर की ओर एक आयताकार मार्ग (एक दरवाजे या एक प्रकार का प्रवेश मार्ग) भी था. गलियारों से सटे हुए चौड़े तहखाने (चौड़ाई 3-4 मीटर) भी पाए गए हैं. एक तहखाने में 2 मीटर चौड़ा कुआं ढक दिया गया था.
- ASI सर्वे रिपोर्ट के अनुसार परिसर में वैज्ञानिक जांच/सर्वेक्षण के दौरान देखी गई सभी वस्तुओं का विधिवत दस्तावेजीकरण किया गया था. इसमें शिलालेख, मूर्तियां, सिक्के, वास्तुशिल्प टुकड़े, मिट्टी के बर्तन, और टेराकोटा, पत्थर, धातु और कांच की वस्तुएं शामिल है. हालांकि इस दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि सर्वे के दौरान मौजूद सरचनाओं को कोई नुकसान न हो.
- सर्वे के दौरान एक पत्थर शिलालेख मिला, जिसका टूटा हुआ हिस्सा पहले से ASI के पास था. इसमें हजरत आलमगीर यानी मुगल सम्राट औरंगजेब के 20वें शासनकाल में (1676-77 सीई) के अनुरूप मस्जिद का निर्माण दर्ज किया गया था. इस शिलालेख में यह भी दर्ज है कि साल 1792-93 सीई में, मस्जिद की मरम्मत सहन आदि से की गई थी.
- मंदिर के पिलर को वर्तमान ढांचे (मस्जिद) को बनाने के लिए री-यूज किया गया. पिलर्स और प्लास्टर को री-यूज किया गया. थोड़े से मोडिफिकेशन के साथ मस्जिद में इन्हें इस्तेमाल किया गया. हिंदू मंदिर के खंभों को थोड़ा बहुत बदलकर नए ढांचे के लिए इस्तेमाल किया गया. पिलर के नक्काशियों को मिटाने की कोशिश की गई.
- इस मंदिर का इस मंदिर में एक बड़ा केंद्रीय कक्ष था और कम से कम एक कक्ष क्रमशः उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में था.
-
उत्तर, दक्षिण और पश्चिम में तीन कक्षों के अवशेष अभी भी मौजूद हैं, लेकिन पूर्व में कक्ष के अवशेष और इसके आगे के विस्तार का भौतिक रूप से पता नहीं लगाया जा सका है, क्योंकि यह क्षेत्र पत्थर के फर्श के नीचे ढका हुआ है.
-
पहले से मौजूद संरचना एक केंद्रीय कक्ष बनाता है. मोटी और मजबूत दीवारों वाली इस संरचना, सभी वास्तुशिल्प घटकों और फूलों की सजावट के साथ मस्जिद के मुख्य हॉल के रूप में उपयोग किया गया था. पहले से मौजूद संरचना के सजाए गए मेहराबों के निचले सिरों पर उकेरी गई जानवरों की आकृतियों को खराब कर दिया गया था और गुंबद के अंदरूनी हिस्से को दूसरे डिजाइनों से सजाया गया है.
- मौजूदा संरचना की पश्चिमी दीवार पहले से मौजूद हिंदू मंदिर का शेष हिस्सा है. पत्थरों से बनी और क्षैतिज सांचों से सुसज्जित यह दीवार, पश्चिमी कक्ष के शेष हिस्सों, केंद्रीय कक्ष के पश्चिमी प्रक्षेपण और इसके उत्तर और दक्षिण में दो कक्षों की पश्चिमी दीवारों से बनी है.
- सर्वे के दौरान मौजूदा और पहले से मौजूद संरचनाओं पर कई शिलालेख देखे गए. वर्तमान सर्वेक्षण के दौरान कुल 34 शिलालेख दर्ज किए गए और 32 शिलालेख लिए गए. ये वास्तव में, पहले से मौजूद हिंदू मंदिरों के पत्थरों पर शिलालेख हैं, जिनका मौजूदा ढांचे के निर्माण/मरम्मत के दौरान पुन: उपयोग किया गया है.इनमें देवनागरी, ग्रंथ, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों में शिलालेख शामिल हैं. इन शिलालेखों में देवताओं के तीन नाम जैसे जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर पाए जाते हैं. तीन शिलालेखों में उल्लिखित महा-मुक्तिमंडप जैसे शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं.
- मौजूदा वास्तुशिल्प अवशेष, दीवारों पर सजाए गए सांचे, केंद्रीय कक्ष के कर्ण-रथ और प्रति-रथ, पश्चिमी कक्ष की पूर्वी दीवार पर तोरण के साथ एक बड़ा सजाया हुआ प्रवेश अंदर और बाहर सजावट के लिए उकेरे गए जानवरों से पता चलता है कि पश्चिमी दीवार किसी हिंदू मंदिर का बचा हुआ हिस्सा है.
- एक कमरे के अंदर मिले अरबी-फारसी शिलालेख में उल्लेख है कि मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के 20वें शासनकाल (1676-77 ई.) में हुआ था. इसलिए, ऐसा प्रतीत होता है कि पहले से मौजूद संरचना को 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान नष्ट कर दिया गया था, और इसके कुछ हिस्से को संशोधित किया गया था और मौजूदा संरचना में पुन: उपयोग किया गया था.