जल प्रदूषण से जुड़े छोटे-मोटे मामलों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और औद्योगिक संयंत्रों की कुछ श्रेणियों को वैधानिक प्रतिबंधों से छूट प्रदान करने वाला विधेयक गुरुवार को संसद से पारित हो गया।
राज्यसभा से मंगलवार को हुआ था पारित
लोकसभा में जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) संशोधन विधेयक, 2024 पर चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि विधेयक के प्रविधानों से जल प्रदूषण से जुड़े विभिन्न मुद्दों से निपटने में ज्यादा पारदर्शिता आएगी। जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 में संशोधन के लिए लाए गए इस विधेयक को राज्यसभा ने मंगलवार को पारित किया था।
विपक्षी सदस्यों ने क्या कहा?
चर्चा के दौरान विपक्षी सदस्यों ने आरोप लगाया कि विधेयक के प्रविधान पर्यावरण संरक्षण कानूनों या संघीय ढांचे को कमजोर करने का प्रयास हैं। लेकिन भूपेंद्र यादव ने विपक्षी सदस्यों की चिंताओं को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि 1974 के कानून में कड़े प्रविधान थे जिनमें छोटे-मोटे प्रविधानों के लिए कारावास की सजा शामिल है।
विधेयक का क्या है उद्देश्य?
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, संशोधन में आपराधिक प्रविधानों को तार्किक बनाने और यह सुनिश्चित करने का प्रस्ताव किया गया है कि नागरिक, कारोबारी और कंपनियां छोटी-मोटी, तकनीकी या प्रक्रियागत गलतियों के लिए कारावास की सजा से डरे बिना काम कर सकें। साथ ही किसी अपराध के दंडात्मक परिणाम की प्रकृति अपराध की गंभीरता के अनुरूप होनी चाहिए।
1974 के कानून के मुताबिक, ऐसा कोई भी उद्योग या ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) की अनुमति अनिवार्य है जो सीवेज को प्रवाहित कर सकता है। संशोधन विधेयक के तहत केंद्र सरकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की सलाह से ऐसी अनुमति लेने से कुछ श्रेणियों के औद्योगिक संयंत्रों को छूट प्रदान कर सकती है।
हो सकती है छह वर्ष की कैद
इसमें यह प्रविधान भी है कि केंद्र सरकार एसपीसीबी द्वारा अनुमति प्रदान करने, इनकार करने या अनुमति रद करने के लिए दिशानिर्देश जारी कर सकती है। साथ ही इसमें एसपीसीबी से अनुमति लिए बिना कोई उद्योग स्थापित करने या संचालित करने के लिए छह वर्ष की कैद व जुर्माने का प्रविधान बरकरार रखा गया है।